समर्पण –10–  औघड़ साधना का एक रूप

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कई दिनों से औघड़ शमशान पर दृष्टि रखे हुए था | आज बहुत दिनों के बाद उसे अपनी मनोवांछित सिद्धि करने का मौका मिला था इसलिए वो चूकना नहीं चाहता था | कुछ लोग एक मरे हुए बच्चे को लाकर उस शमशान में दबा गये थे | चारों तरफ घनघोर जंगल था और अब अकेला औघड़ था वहां  मगर यह क्रिया सिद्ध करनी उसके अकेले के बस में नहीं था इसलिए कुछ सोच कर वो मेरे पास आ  गया क्योंकि उसे किसी अनुभवी साधक की जरूरत थी जो शमशान साधना की क्रिया से गुजर चुका  हो | आज बहुत दिनों के बाद मुझे इस सिद्धि को करने का अवसर मिला है इसलिए अगर आज मैं चूक गया तो कई वर्षों में ना जाने फिर कब अवसर मिले, इसलिए आप एक साधक हैं मेरी मदद करें | मैंने औघड़ की आँखों में देखा, उसकी आँखों में याचना थी, मैंने स्वीकृति दे दी और उस क्रिया के लिए जरूरी सामान जोकि 20 लीटर दूध और एक बड़ी सी कड़ाही और एक केन जल लिया और आवश्यक पूजन सामग्री ली और करीब रात्रि 1 बजे के करीब शमशान की तरफ बढ़ गये |

औघड़ के क़दमों में विशेष गति थी | हम शमशान में पहुँच गये और औघड़ ने पानी लेकर विशेष मंत्र पढ़ा और चारों तरफ पानी के छींटे दे दिए और उसके बाद वो कब्र खोद कर बच्चे को निकाल लाया और उसे सर्वप्रथम जल से स्नान कराया और फिर उसे कढ़ाही में बिठा कर दूध से उसका अभिषेक किया और फिर स्नान करा कर अपने थैले में से वस्त्र निकाल कर उसे पहना दिए और एक तरफ लिटा दिया और उस पर फूल और कुछ मन्त्र बोलते हुए कुछ सरसों जैसी वस्तु फेंकता रहा और फिर एक दिया लगा कर कुछ विशेष मन्त्र पढ़ने लगा और उसे बच्चे के कान में फूंक मारी तो वह तुरंत उठ कर बैठ गया | औघड़ ने उसे दीक्षा दी और उसका नामकरण संस्कार किया और उसे एक नाम दिया और फिर उसके कान में गुरु मन्त्र दिया और उसे आशीर्वाद देकर कहा आज से तुम मेरे बच्चे हो, मैं जब भी तुम्हे आवाज दूं तुम्हे आकर मेरी आज्ञा का पालन करना है और फिर कुछ मन्त्र बोले और उसे आशीर्वाद दिया और उसकी आँखों में देखा और थोड़ी देर बाद ही वो बालक अचेत होकर गिर गया और औघड़ ने उसे दोबारा कब्र में दफना दिया और इस क्रिया में 2 घंटे सहज ही लग गये |दूध को दोबारा केन में डाला और कड़ाही वगेरह उठा कर हम वापिस आ गये |

दुसरे दिन दूध को निकाल कर दही ज़माने के लिए लगा दिया और दही जमने के बाद उसे मथ कर माखन निकाल लिया और उसे गर्म करके घी बना लिया और एक डिब्बे में डाल लिया | उसमें और घी लेकर औघड़ ने मिला दिया और मुझे उसमें से कुछ घी दे दिया और कहा जैसे ही इसका दिया किया जायेगा वो बालक प्रकट हो जायेगा और जैसा उसे कहा जायेगा वो करेगा, यहाँ तक की अगर कोई वस्तु की जरूरत हो तो वो उसी वक़्त ले आता है और जैसे जैसे वो बड़ा होता जायेगा उसकी ताकत भी बढ़ती जाएगी और रात्रि को औघड़ ने दिया जगा दिया और देखते ही देखते वो बालक सामने आकर बैठ गया, जो अभी छोटा  था, अबोध था इसलिए उसे औघड़ ने कोई आज्ञा नहीं दी | उसकी शिक्षा के लिए सही वक़्त की इंतजार करनी पड़ेगी और उसके बाद वो चला गया और घी मैंने संभाल लिया और उसमें और मिला लिया |

15 साल के करीब टाइम निकल गया | एक दिन मूर्ति नाथ जोकि नाथ सम्प्रदाय का एक महात्मा था मिलने आया | रात्रि काफी लेट आया वो | मुर्तिनाथ रसायन क्रिया का ज्ञाता है और कभी कभी मिलने आ जाता | रात्रि को चाय बनाने के लिए कहा तो देखा चीनी नहीं थी | उसके साथ तीन नाथ और थे | अरे यह क्या अभी ये क्या सोचेंगे, तो कुछ सोच कर मैंने घी निकाल कर दिया जगा दिया | मूर्ति नाथ और उसके साथी देख रहे थे और उसी वक़्त वो बालक जो अब जवान हो गया था आगे आकर खड़ा हो गया और आज्ञा मांगने लगा तो मैंने चीनी लाने के लिए कहा और वो उसी क्षण गायब हो गया और 15 मिनट के बाद ही एक आधी बोरी चीनी उड़ती हुई आई और हमारे सामने  नीचे जैसे किसी ने रख दी हो | उसके बाद वो लड़का दिखा और कहा बाबा जी यह चीनी हाजिर है | मैंने उसे जाने को कहा और वह चला गया | चाय बन गई, मूर्ति नाथ कहने लगा बाबा जी यह चीजें  आप जैसे गृहस्थों के लिए नहीं हैं, इसे आप मुझे दे दें और मैंने उस घी को उठा के नाथ को दे दिया  और उसने भी कभी मुझे किसी बात के लिए कभी ना नहीं की थी | ज्ञान और प्रेम में सिर्फ समर्पण किया जाता है | आज कई साल हो गये | मुर्तिनाथ ने मुंबई के आस पास ही कहीं कालभैरव का मंदिर बना लिया और मुझे 5 वर्ष बाद मिला और कहा आज भी वो चीज मेरे पास आज्ञाकारी बच्चे  की तरह चलती है | (क्रमशः)