समर्पण – 1

Posted on Posted in Samarpan


बात सन 1999 की है | मैं उन दिनों ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था | कुछ विशेष जानने की इच्छा कभी घर टिकने ना देती थी | गुरु कृपा से उन दिनों मैं एक विशेष संत जी से मिला | आज कुदरती मुलाकात हो गई थी | पिछले छह महीने से मैं उनसे मिलने के चक्कर काट रहा था | बाबा जी बहुत ही सरल स्वभाव के थे | उनको देख के यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि ये विश्व के सर्वोतम संतो में से एक हैं |मैं गया प्रणाम किया,  वो सादे लिबास में प्रसन्न मुद्रा में थे | मैंने सुना था वो बहुत अच्छे ज्योतिषी हैं | बस मेरी भी रूचि इस विषय में थी और उनका सानिध्य प्राप्त करने के इरादे से उनसे मिला कि कुछ महत्वपूर्ण जानकारी ले सकूँ | वो बहुत ही सादे रहते थे और एक दम फक्कड़ स्वभाव के थे | मैं एक दो बार उनके पास गया और एक दिन उन्होंने कहा, तुम यहाँ रुको | मैं रात्रि वहां रुक गया | कुछ दिन पा कर  ऐसे अक्सर वहां रात्रि विश्राम कर लेता | उनका परिवार भी उनके साथ था और एक कुटिया बाहर बनाई थी जहाँ उनसे मिलने वाले शुभ दिनों में आकार खासकर शिवरात्रि को या दीपावली को आते थे | मुझे वहां आये दो दिन हुए थे | एक रात स्वप्न में श्री छोटे गुरुदेव जी आये | मैंने प्रणाम किया, मुझे कहने लगे तुम यहाँ ठहर सकते हो, रह सकते हो, फिर उन्होंने मेरी तरफ देखा | मैंने भी खुद को देखा, मेरे कंधे पर धनुष था और बाण भी थे | उन्होंने कहा, यह धनुष तोड़ दो, मैंने तोड़ दिया | शायद वो जानते थे कि मेरी यहाँ बहुत बड़ी सहनशीलता की परीक्षा होनी थी | उस दिन के बाद बाबा जी ने वहां रुकने की जिद की और मैं वहां रहने लगा | धीरे- धीरे करके आश्रम का सारा काम मैंने सम्भाल लिया | संगत की सेवा और ज्योतिष का टेवे आदि बनाना,   जहाँ जरूरत हो हवन आदि करने भी वो मुझे भेजते थे | धीरे- धीरे मैं उनके बहुत करीब आ गया था |

एक रात मैं अपना कार्य समाप्त कर सोने के लिए अपनी कुटिया में आ गया | नींद नहीं आ रही थी | कुटिया के पास से थोरी दूरी पर ही एक नदी बहती थी | रात को जब मन ना लगता तो उस तरफ टहलने चला जाता | अक्सर रात को मुश्किल से दो घंटे ही सो पाता और फिर रात्रि एक बजे से गुरु मन्त्र पर बैठ जाता और सुबह फिर अपने काम पर पांच बजे से दिनचर्या शुरू हो जाती | उस रात भी मैं नदी पर टहल कर आया तो गुरु मन्त्र पर बैठ गया | रात्रि के अढाई बज गये थे,  अचानक दरवाजा खुला और बाबा जी अन्दर आ गये और बिना कुछ कहे मेरी तरफ देख कर मुस्कराए और मेरे देखते ही देखते शेर के रूप में परिवर्तित हो गये और सामने बैठ गये और थोरी देर में माता जी आ गई उनकी धर्म पत्नी, उन्होंने भी शेरनी का रूप धारण कर लिया | मुझे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था, मगर मैं समझ गया कि यह आज अपनी लीला दिखा रहे हैं | सुबह 4 बजे के करीब वो शेर वेश में ही मेरी तरफ देखा और बाहर निकल गये, माता जी भी उनके पीछे ही चली गई, मैं समझ गया था कि मैं एक पूर्ण संत की शरण में हूँ और सुबह मैंने जब उनसे पूछा तो उन्होंने हंस कर जबाब दिया कि संत शेर ही होते हैं | मैं 5 वर्षों तक उनकी संगत में रहा | इस दौरान अनेकों साधना आयामो को छूने का अवसर मिला | समय समय चर्चा करता रहूँगा |

एक बार गुरुदेव ने पूछा था क्या चाहिए, मैंने कहा सेवा, तब उन्होंने कहा अगर तुझे सेवा दे दी तो पैसे के लिए तो नहीं रोयेगा, मैंने कहा जो आपकी इच्छा होती है वोही होता है | उन्होंने कहा तुझे सेवा और पूर्णता दोनों प्रदान करूँगा और आज मुझे गुरुदेव का वचन याद आ रहा था कि इन संतो की सेवा में मेरा आना तो एक बहाना है असल में वो अपना वचन निभा रहे हैं | (कर्मशः )