श्रीनायिका कवचम् – यक्षिणी वशीकरण हेतु

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।। श्री उन्मत्त-भैरव उवाच ।।

श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यंकवचं देव-दुर्लभं । यक्षिणी-नायिकानां तु

संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।

हे कल्याणि ! देवताओं को दुर्लभसंक्षेप (शीघ्र) में सिद्धि देने वाले,

यक्षिणी आदि नायिकाओं के कवच को सुनो –

 

ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं । यक्षिणि स्वयमायाति

कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।

हे देवशि ! इस कवच के ज्ञान-मात्र से यक्षिणी स्वयं आ जाती है और निश्चय ही सिद्धि मिलती है ।

 

सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं । पठनात् धारणान्मर्त्यो

यक्षिणी-वशमानयेत् ।।

हे देवि ! यह कवच सभी शास्त्रों में दुर्लभ हैकेवल डामर-तन्त्रों में प्रकाशित किया गया है ।

इसके पाठ और लिखकर धारण करने से यक्षिणी वश में होती है ।

विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्रीगर्ग ऋषिःगायत्री छन्दः

श्री अमुकी यक्षिणी देवतासाक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यासः-

श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसिगायत्री छन्दसे नमः मुखेश्री

अमुकी यक्षिणी देवतायै नमः हृदिसाक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे

विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

 ।। मूल पाठ ।।

शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका । 

मुखं श्री धनदा पातुकर्णौ मे कुल-नायिका ।।

चक्षुषी वरदा पातुनासिकां भक्त-वत्सला ।

केशाग्रं पिंगला पातुधनदा श्रीमहेश्वरी ।।

स्कन्धौ कुलालपा पातुगलं मे कमलानना ।

किरातिनी सदा पातुभुज-युग्मं जटेश्वरी ।।

विकृतास्या सदा पातुमहा-वज्र-प्रिया मम ।

अस्त्र-हस्ता पातु नित्यंपृष्ठमुदर-देशकम् ।।

मेरे सिर की रक्षा यक्षिणिललाट (मस्तक) की यक्ष-कन्यामुख की श्री धनदा

और कानों की रक्षा कुल-नायिका करें । आँखों की रक्षा वरदा,नासिका की

भक्त-वत्सला करे । धन देनेवाली श्रीमहेश्वरी पिंगला केशों के आगे के भाग

की रक्षा करे । कन्धों की रक्षा किलालपागले की कमलानना करें । दोनों

भुजाओं की रक्षा किरातिनी और जटेश्वरी करें । विकृतास्या और महा-वज्र-प्रिया

सदा मेरी रक्षा करें । अस्त्र-हस्ता सदा पीठ और उदर (पेट) की रक्षा करें ।

 

भेरुण्डा माकरी देवीहृदयं पातु सर्वदा ।

अलंकारान्विता पातुमे नितम्ब-स्थलं दया ।।

धार्मिका गुह्यदेशं मेपाद-युग्मं सुरांगना ।

शून्यागारे सदा पातुमन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।

निष्कलंका सदा पातुचाम्बुवत्यखिलं तनुं ।

प्रान्तरे धनदा पातुनिज-बीज-प्रकाशिनी ।।

लक्ष्मी-बीजात्मिका पातुखड्ग-हस्ता श्मशानके ।

शून्यागारे नदी-तीरेमहा-यक्षेश-कन्यका ।।

पातु मां वरदाख्या मेसर्वांगं पातु मोहिनी ।

महा-संकट-मध्ये तुसंग्रामे रिपु-सञ्चये ।।

क्रोध-रुपा सदा पातुमहा-देव निषेविका ।

सर्वत्र सर्वदा पातुभवानी कुल-दायिका ।।

हृदय की रक्षा सदा भयानक स्वरुपवाली माकरी देवी तथा नितम्ब-स्थल की

रक्षा अलंकारों से सजी हुई दया करें । गुह्य-देश (गुप्तांग) की रक्षा धार्मिका

और दोनों पैरों की रक्षा सुरांगना करें । सूने घर (या ऐसा कोई भी स्थान,

जहाँ कोई दूसरा आदमी न हो) में मन्त्र-माता-स्वरुपिणी (जो सभी मन्त्रों की

 माता-मातृका के स्वरुप वाली है) सदा मेरी रक्षा करें । मेरे सारे शरीर

की रक्षा निष्कलंका अम्बुवती करें । अपने बीज (मन्त्र) को प्रकट करने वाली

धनदा प्रान्तर (लम्बे और सूनसान मार्गजन-शून्य या विरान सड़कनिर्जन

भू-खण्ड) में रक्षा करें । लक्ष्मी-बीज (श्रीं) के स्वरुप वाली

खड्ग-हस्ता श्मशआन में और शून्य भवन (खण्डहर आदि) तथा नदी के किनारे

महा-यक्षेश-कन्या मेरी रक्षा करें । वरदा मेरी रक्षा करें । सर्वांग की रक्षा मोहिनी करें

 महान संकट के समययुद्ध में और शत्रुओं के बीच में महा-देव की सेविका

 क्रोध-रुपा सदा मेरी रक्षा करें । सभी जगह सदैव किल-दायिका भवानी मेरी रक्षा करें ।

 

इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं ।

अस्यापि स्मरणादेवराजत्वं लभतेऽचिरात् ।।

पञ्च-वर्ष-सहस्राणिस्थिरो भवति भू-तले ।

वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम् ।

अरण्ये सिद्धिमाप्नोतिमहा-कवच-पाठतः ।

यक्षिणी कुल-विद्या चसमायाति सु-सिद्धदा ।।

अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत् ।

पठित्वा धारयित्वा चनिर्जनेऽरण्यमन्तरे ।।

स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि ।

भार्या भवति सा देवीमहा-कवच-पाठतः ।।

ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्नात्र कार्या विचारणा ।।

हे देवी ! यह कवच महा-यक्षिणी की प्रीति देनेवाला है । इसके स्मरण मात्र

से साधक शीघ्र ही राजा के समान हो जाता है । कवच का पाठ-कर्त्ता पाँच हजार

वर्षों तक भूमि पर जीवित रहता है है और अवश्य ही वेदों तथा अन्य सभी

शास्त्रों का ज्ञाता हो जाता है । अरण्य (वनजंगल) में इस महा-कवच का

पाठ करने से सिद्धि मिलती है । कुल-विद्या यक्षिणी स्वयं आकर अणिमालघिमा,

प्राप्ति आदि सभी सिद्धियाँ और सुख देती है । कवच (लिखकर) धारण करके तथा

 पाठ करके रात्रि में निर्जन वन के भीतर बैठकर (अभीष्ट) यक्षिणि के

मन्त्र का १ लाख जप करने से इष्ट-सिद्धि होती है । इस महा-कवच का पाठ करने से

वह देवी साधक की भार्या (पत्नी) हो जाती है । इस कवच को ग्रहण करने से

सिद्धि मिलती है इसमें कोई विचार करने की आवश्यकता नहीं है ।

।। इति वृहद्-भूत-डामरे महा-तन्त्रे श्रीमदुन्मत्त-भैरवी-भैरव-सम्वादे यक्षिणी-नायिका-कवचम् ।।