नव नाग साधना रहस्य एवं नाग पूजन एवं नाग बलि विधान || Nav Naag Sadhna Rahsya- Naag pujan – Naag Bali Vidhan

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नाग साधना हर प्रकार से श्रेष्ठ मानी गई है | यह जीवन में धन धान्य की बरसात करती है | हर प्रकार से सभी प्रकार के शत्रुओ से सुरक्षा देती है | इससे साधक ज्ञान का उद्य कर अन्धकार पर विजय करते हुए सभी प्रकार के भय से मुक्ति पाता है | इसके साथ ही अगर कुंडली में किसी प्रकार का नाग दोष है तो उससे भी मुक्ति मिलती है | नाग धन तो देते हैं, जीवन में प्रेम की प्राप्ति भी इनकी कृपा से मिल जाती है | हमने यह साधना बहुत समय पहले की थी और यह अनुभव किया कि यह जीवन का सर्वपक्षी विकास करती है | यहाँ मैं उसी अनुभूत साधना को दे रहा हूँ जो नव नागों के नाम से जानी जाती है | इसके साथ ही नाग पूजा विधान और विसर्जन के साथ विष निर्मली मंत्र, सर्प सूक्त आदि  दिया जा रहा है जो आपकी कुंडली में से नाग दोष हटाकर जीवन को सुरक्षा देते हुए सभी दोषों का शमन करता है | चलो जानते हैं कि क्या है 9 विशेष नाग रूप जिन्हें नाग शिरोमणि कहा जाता है | इनकी साधना से क्या क्या लाभ हैं | नाग साधना में किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए | यह साधना अति गोपनीय और महत्वपूर्ण मानी जाती है | इस को करने से जीवन में सभी प्रकार की  उन्नति  मिलती है और जीवन का सर्वपक्षी विकास होता है | मेरा मानना है अगर नाग कन्या साधना से पहले यह नव नागों की साधना कर ली जाए तो नाग कन्या साधना जल्द सफल होती है और जीवन में पूर्ण प्रेम व सुख प्रदान करती है |

नाग साधना के 9 रूप और लाभ

१.  शेष नाग – नाग देवता के इस रूप को आप सभी जानते हैं | भगवान विष्णु के सुरक्षा आसन के रूप में जाने जाते हैं | यह भगवान विष्णु का अभेद सुरक्षा कवच है | जब कोई साधक सच्चे मन से भगवान शेष नाग की उपासना या साधना करता है तो उसके जीवन के सारे दुर्भाग्य का नाश कर देते हैं | उसके जीवन में अखंड धन की बरसात कर देते हैं | अगर जीवन की प्रगति के सभी मार्ग बंद हो गए हैं, अगर जीवन में अचल संपति की कामना है | आय के स्त्रोत नहीं बन रहे तो आप भगवान शेष नाग की साधना से वह सभी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं | जो भी साधक भगवान शेष नाग की साधना करता है उसे शेषनाग अभेद सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं | कर्ज से मुक्ति देते हैं, व्यापार में वृद्धि होती है | जीवन में सभी कष्टों का नाश करते हैं | इसके अलावा आसन में स्थिरता प्रदान करते हैं और साधक में संयम आदि गुणो का विकास करते हैं |

२.  कर्कोटक नाग – जिनका जीवन हमेशा भय के वातावरण में गुजर रहा है | जिन्हें शत्रु का भय रहता है | घर में भयपूर्ण माहौल है, तो उनके लिए यह साधना वरदान स्वरूप मानी गई है | इसे संपन्न कर लेने से सभी परिवार के सदस्य पूर्ण रूप से सुरक्षित रहते हैं और साधक स्वः भी हर प्रकार से सुरक्षित रहता है | सुरक्षा के लिए यह एक बेमिसाल साधना है |

३.  वासुकि नाग – यह भगवान वासुकि का रूप हिमालय का अधिपति है | यह ज्ञान और बुद्धि को प्रदान करते हैं | स्टूडेंट के लिए यह एक अच्छी साधना है | जीवन में सर्वपक्षी विकास और जो ज्ञान चाहते हैं, उन्हे यह साधना मार्गदर्शन करती है | इस साधना को करने से शिक्षा संबंधी जो भी समस्या है और अगर नौकरी नहीं मिलती, नौकरी प्राप्ति में बाधाएं आ रही हों | हर प्रकार के ज्ञान में अगर कोई बाधा हो, उससे मुक्ति मिलती है | इसके साथ व्यक्ति एक तेजस्वी मस्तिष्क का स्वामी बनता है,  उसे अद्भुत बुद्धि की प्राप्ति होती है और याद्दास्त तेज होती है | विद्या प्राप्ति के क्षेत्र में यह अमोघ साधना मानी  गई है | इसके साथ ही यह साधक को परालोकिक ज्ञान भी देते हैं | 

४.  पदम नाग – जिनके जीवन में विवाह की बाधा है | शादी में बार बार रुकावट आ रही हो तो उनके लिए यह साधना सर्वश्रेष्ठ है | इस साधना को करने से विवाह संबधि समस्या दूर होती है और संतान की प्राप्ति का वरदान भी पद्म नाग देते हैं | इसके साथ साथ अद्भुत सम्मोहन की प्राप्ति भी कराते हैं |

५.  धृतराष्ट्र नाग – नाग देवता का यह रूप जीवन में प्रेम प्राप्ति कराता है | इस साधना से जहां आपके प्रेम संबद्धों में कोई बाधा आ गई हो या आप जीवन में प्रेम संबंध बनाना चाहते हों तो उसमें आ रही हर रुकावट को दूर करती है | प्रेम संबंधों में इस साधना से मधुरता आती है और नवीन प्रेम सम्बन्ध सफल होते हैं |

६.  शंखपाल नाग – देवता का यह रूप संपूर्ण पृथ्वी का अधिपति है | जो साधक जीवन में पृथ्वी भ्रमण की इच्छा रखता हो, विदेश यात्रा करना चाहता हो या विदेश यात्रा में कोई रुकावट आ रही हो तो उसे यह साधना करनी चाहिए | यह सभी यात्रा की रुकावटें दूर करती है | इस साधना के आध्यात्मिक लाभ भी हैं | इससे साधक अपने सूक्ष्म स्वरूप से जुड़ जाता है और दूर आध्यात्मिक स्थानों की यात्रा कर लेता है | यह एक श्रेष्ठ साधना मानी गई है | इसी तरह सभी नाग साधना के आध्यात्मिक लाभ भी हैं जिन्हें साधक को खुद अनुभव करना चाहिए | यहाँ मैं आपके कार्य की बाधा को दूर करना और कुछ भौतिक लाभ ही बता रहा हूँ |

७.  कंबल नाग – यह नाग देवता का स्वरूप नाग अधिपति के नाम  से जाना जाता है | अगर जीवन में रोग है, वह दूर नहीं हो रहा तो नाग देवता के इस स्वरूप की आराधना रोग मुक्ति करती है | जीवन में रोग के भय का नाश करते हुए साधक को पूर्ण रोग मुक्ति का वरदान देती है | जिनको कोई न कोई रोग बीमारी है, दवाई असर नहीं देती, रोग पीछा नहीं छोड़ रहा, उन्हे इस साधना से बहुत लाभ मिलता है | यह रोग मुक्त जीवन प्रदान कर साधक को पूर्ण सुरक्षा देती है | इससे असाध्य रोग दूर होते हैं | यह  कायाकल्प सिद्धि आदि भी दे देते हैं | मगर इसके लिए कठोर साधना पूर्ण विधान से करनी पड़ती है |

८.  तक्षक नाग –यह नाग देवता का स्वरूप हर प्रकार के शत्रु का नाश करता है | शत्रु बाधा से मुक्ति देता है | जिन साधकों के जीवन में हर पल शत्रु का भय है | उन्हे यह साधना संपन्न करनी चाहिए | यह हर प्रकार के शत्रु संहार करते हैं | शत्रु दुआरा उत्पन्न की सभी बाधाओं को हर लेते हैं | यह एक बहुत ही तीक्ष्ण साधना है | इसलिए यह साधना साधको को पूर्ण सावधान होकर ही करनी चाहिए |

९.  कालिया नाग – यह नाग देवता का स्वरूप हर प्रकार की तंत्र बाधा दूर करता है | अगर किसी ने आप पर कोई अभिचार कर दिया हो या आप तंत्र बाधा से परेशान हैं तो यह साधना उससे मुक्ति प्रदान करती है | इसके साथ ही यह किसी भी बुरी शक्ति के प्रभाव से मुक्ति देती है और आपकी ग्रह बाधा भी दूर करती है | इसके और भी कई प्रयोग हैं अगर काली नाग को किसी पर छोड़ दिया जाए तो वह उसका नाश कर देते हैं और शत्रु की हर प्रकार की प्रगति को भी रोक देते हैं | अगर शत्रु  ने आप पर कुछ किया है तो उसकी सजा उसे दे देते हैं |

यह नाग साधना के 9 रूप अपने आप में तीक्ष्ण हैं | यह जहां आपको धन आदि लाभ, भौतिक लाभ और आध्यात्मिक लाभ भी देते हैं जैसे आसन की स्थिरता शेष नाग देते हैं और मन के विकारों पर विजय दिलाते हैं | नाग साधना से दूरदर्शिता बढ़ती है | ज्ञान चक्षु विकसित होकर खुल जाते हैं | दूरदर्शन सिद्धि, दूर श्रवण सिद्धि, भूगर्भ सिद्धि, कायाकल्प, मनोवांछित रूप परिवर्तन, गंध त्रिमात्र, लोकाधिलोक गमन आदि ऐसी बहुत सी सिद्धियाँ जो नाग कृपा से या नाग साधना से प्राप्त की जा सकती हैं, मगर इसके लिए कठोर साधना करनी पड़ती है | यहाँ भौतिक लाभ प्राप्ति के लिए एक एक दिन की 9 साधना दी जा रही हैं | जो बहुत सरल और जल्द सिद्ध होने वाली हैं | नाग साधना अति शीघ्र फल देती है | इसलिए साधना पूर्ण श्रद्धा और विश्वाश  से करनी चाहिए | नगेंदर |

नाग पूजन एवं नाग बलि विधान

यह नाग पूजन दुर्लभ माना गया है | यह हर नाग साधना में जरूरी है | जहां तक ज्योतिष का सवाल है, बहुत ज्योतिषी आज कल कालसर्प योग का भय दिखाकर मन चाहा धन लेते हैं और पूजा के नाम से आपसे मोटी रकम ले ली जाती है | इस पूजन से हर प्रकार का नाग दोष और नाग भय हट जाता है | यह बात मैं पूरे विश्वाश से कहता हूँ क्योंकि यह पूजन मैंने सैकड़ों लोगों को कराया है और उनके नाग दोष का शमन किया है | नाग पूजन इसलिए भी देना उचित समझता हूँ क्योंकि आगे आने वाली नव नागों की साधना में यह पूजन आधार स्तंभ का काम करेगा | इसलिए आप अपने मन को हमेशा प्रसन्न रखते हुए नाग साधना करें और पूजन से भी लाभ लें | ऊपर जो नव नाग रहस्य बताया गया है उसमें दी गई हर साधना का पूर्ण लाभ लेने के लिए यह पूजन बहुत महत्व रखता है | यह हर साधना में आएगा और अगर आप कुंडली में नाग दोष की वजह से परेशान हैं,  तो भी यह पूजन करें इससे आपको पूर्ण लाभ मिलेगा | जो साधक साधना करना चाहते हैं वो इस नाग पूजन को साधना के वक़्त करें |

जो सिर्फ कुंडली के दोष निवारण के लिए करना चाहते हैं, उन्हे चाहिए कि नव नाग का निर्माण करें या बाजार से पूजा की दुकान से नाग खरीद लें जिसमें 2 सोने के नाग छोटे छोटे सुनार से लें और 2 चाँदी के सर्प लेने हैं, दो ताँबे के, 2 सिक्के के मतलब लेड के |  एक आटे को गूँथ कर उसका सात मुख का नाग बना लें | उस नाग को थोड़े गरम घी में भिगोकर  उस पर सफ़ेद तिल लगा दें जो पूरे नाग पर लगे हों | उसके फन पर या उस पर  7 कौड़ी रख दें | उसे कुशा के आसन पर रखें या एक केले का पता लेकर उस पर थोड़ी कुशा बिछा कर उस पर रख दें जो वेदी के उपर रहेगा | इसके साथ ही जमीन पर रेत बिछा कर एक पूजन वेदी का निर्माण करें और उसमें नव ग्रह मण्डल और नाग पीठ का निर्माण करें | नाग पीठ में मध्य में एक अष्ट दल कमल बनाए और उसमें जो नाग आप बाजार से लाये हैं उन्हे एक पात्र में स्थापित कर देना है और नव ग्रह यंत्र का निर्माण भी आटे और हल्दी की मदद से बना लेना है | उसी पीठ में स्वस्तिक बनाकर श्री गणेश की स्थापना करनी है | साथ ही ॐ, शिव, षोडश मातृका, पित्र देव, वास्तु देव आदि का स्थापन करना है | सबसे पहले कलश आदि स्थापित कर गुरु पूजन करें | फिर गणेश, ओंकार, शिव ,षोडश मातृका और नव ग्रह, पितृ देव और वास्तु देवता का पूजन यथा योग्य सामर्थ्य अनुसार करें , फिर प्रधान देव पूजन करें |

 

 

 

ध्यान

अनंन्तपद्म पत्राथं फणाननेकतो ज्वलम् |

दिव्याम्बर-धरं देवं, रत्न कुण्डल- मण्डितम् ||

नानारत्न परिक्षिप्तं मकुट’ द्दुतिरंजितम |

फणा मणिसहस्रोद्दै रसंख्यै पन्नगोतमे ||

नाना कन्या सहस्रेण समंतात परिवारितम् |

दिव्याभरण दिप्तागं दिव्यचंदन- चर्चितम् ||

कालाग्निमिव दुर्धषर्म तेजसादित्य सन्निभम |

ब्रह्मण्डाधार भूतं त्वां, यमुनातीर-वासितम ||

भजेsहं दोष शन्त्यैत्र, पूजये कार्यसाधकम |

आगच्छ काल सर्पख्या दोष आदि निवारय ||

आसनम

नवकुलाधिपं शेषं ,शुभ्र कच्छ्प वाहनम |

नानारत्नसमायुकतम आसनं प्रति गृह्राताम ||

पाद्दम

अन्न्त प्रिय शेषं च जगदाधार –विग्रह |

पाद्द्म ग्रहाणमक्तयात्वं काद्रवेय नमोस्तुते ||

अर्घ्यम

काश्यपेयं महाघोरं, मुनिभिवरदिन्तं प्रभो |

अर्घ्यं गृहाणसर्वज्ञ भक्तय मां फ़लंदयाक ||

आचमनीयम्

सहस्र फ़णरुपेण वसुधाधारक प्रभो |

गृहाणाचमनं दिव्यं पावनं च सुशीतलम् ||

पन्चामृतं स्नानम्

पन्चामृतं गृहाणेदं पावनं स्वभिषेचनम् |

बलभद्रावतारेश ! क्षेयं कुरु मम प्रभो ||

वस्त्रम्

कौशेय युग्मदेवेश प्रीत्या तव मयार्पितम |

पन्नगाधीशनागेन्द्र तक्ष्रर्यशत्रो नमोस्तुते ||

यज्ञोपवीतम

सुवर्ण निर्मितं सूत्रं पीतं कण्ठोपाहारकम् |

अनेकरत्नसंयुक्तं सर्पराज नमोस्तुते ||

अथ अंग पूजा

अब चन्दन से  अंग पूजा करें 

सहस्रफ़णाधारिणे नमः पादौ पूजयामि | अनंद्दाये नमः गुल्फ़ौ पूजयामि | विषदन्ताय नमः जंधौ पूजयामि | मन्दगतये नमः जानू पूजयामि | कृष्णाय नमः कटिं पूजयामि | पित्रे नमः नाभिं पूजयामि | श्र्वेताये नमः उदरं पूजयामि | उरगाये नमः स्त्नो पूजयामि | कलिकाये नमः भुजौ पूजयामि | जम्बूकण्ठाय नमः कण्ठं पूजयामि | दिजिह्वाये नमः मुखं पूजयामि | मणिभूषणाये नमः ललाटं पूजयामि | शेषाये नमः सिरं पूजयामि | अनन्ताये नमः सर्वांगान पूजयामि |

गन्धं

कस्तूरी कर्पूर केसराढयं गोरोचनं चागररक्तचन्दनं |

श्री चन्द्राढयं शुभ दिव्यं गन्धं गृहाण नागाप्रिये मयार्तितम् ||

अक्षतान्

काश्मीर पंकलितप्राश्च शलेमानक्षतान शुभान् |

पातालाधिपते तुभ्यं अक्षतान् त्वं गृहाण प्रभो ||

पुष्पं

केतकी पाटलजातिचम्पकै बकुलादिभिः |

मोगरैः शतपत्रश्च पूजितो वरदो भव ||

धूप दीप

सौ भाग्यं धूपं दीपं च दर्शयामि |

नैवेद्दम्

नैवेद्दा गृहातां देव क्षीराज्य दधि मिश्रितम् |

नाना पक्वान्न संयुक्तं पयसं शर्करा युतम् ||

फ़ल् ,ताम्बूल, दक्षिणाम, पुष्पांजलि नमस्कारं —

अनन्त संसार धरप्रियतां कालिन्दजवासक पन्नगाधिपते |

न्मोसिस्म देवं कृपणं हि मत्वा रक्षस्व मां शंकर भूषणेश ||

 

एक आचमनी जल चढाते हुये अगर कोई कमी रह गई हो तो उसकी पूर्णता के लिये प्रार्थना करें |

 

अनयापूजन कर्मणा कृतेन अनन्तः प्रियताम् |

राहु केतु सहित अनन्ताद्दावहित देवाः प्रियतम् नमः ||

साधक यहाँ तक पूजन कर साधना कर सकते हैं | जो कुंडली के दोष या कालसर्प दोष शांति के लिए विधान कर रहे हैं वह आगे पूरा कर्म करें |

पूजन के पश्चात आप निम्न नव नाग गायत्री से १००८ आहुति किसी पात्र में अग्नि जला कर अजय आहुतिया देने के बाद दें |

मन्त्र

|| ॐ नवकुलनागाये विदमहे, विषदन्ताय धीमहि तन्नोः सर्पः प्रचोदयात्  ||

       

अथ नाग बलि विधान

उसके बाद नाग बली कर्म करना चाहिये | एक पीपल के पत्ते पर उड़द, चावल,  दही रखकर एक रुई कि बत्ती बना कर रखें और उसका पूजन कर नाग बली अर्पण करें |

प्रधान बली – इस मन्त्र से बली अर्पण करें |

ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो येकेन पृथ्वीमन |

ये अन्तरिक्षे ये दिवोतेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ||

अनन्त वासुकि शेषं पदमं कम्बलमेव च |

धृतराष्ट्रं शंखपालं कालियं तक्षकं तथा,

पिंगल च महानाम मासि मासि प्रकीर्तितम |

 

अब नैऋत्य दिशा में सभी भूत दिक्पालों को बलि अर्पण करें 

मन्त्र

सर्वदिग्भुतेभ्यो नमः गंध पुष्पं समर्पयामि | सर्व दिग्भुत बलि द्रव्यये नमः गन्ध पुष्मं समर्पयामि | हस्ते जलमादाये सर्व दिग्भुते भ्यो नमः इदं बलि नवेद्यामि |

नमस्कार

सर्व दिग्भुते भ्यो नमः नमस्कार समर्पयामि |

अनया पूजन पूर्वक कर्मणा कृतेन सर्व दिग्भुतेभ्यो नमः |

मन्त्र पुष्पाजलि

ॐ यज्ञेन यज्ञमय देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् | ते.ह् नाक महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ||

प्रदक्षिणा

यानि कानि च पापानि ज्ञाताज्ञात कृतानि च |

तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे –पदे ||

 —– इति श्री नाग बलि विधानं संपूर्णं ——-

विश निर्मली करणं

अब निम्न मंत्र पढ़ते हुए हाथ में जल लेकर सभी नागों पर छिडकें और इस मंत्र का 11 बार या 21 बार जप करें |

विश निर्मली मंत्र

सर्पापसर्प भद्र्म ते गच्छ सर्प महा विष |

जनमेजयस्य यज्ञान्ते, आस्तीक वचनं स्मर ||

आस्तीक्स्य वच: श्रुत्वा, यः सर्पो ना निवर्तते |

शतधाभिद्द्ते मूर्ध्नि, शिशं वृक्ष फ़लम् यथा ||  

अथ सर्प वध प्रयशिचत कर्म

अगर मन, ह्रदय  में ऐसा विचार हो कि मेरे दुआरा सर्प वध हुआ है | कई विद्वान् मानते हैं कि कुंडली में सर्प दोष या नाग दोष जिसे लोग काल सर्प योग भी कहते हैं तभी लगता है जब पूर्व जन्म में या स्व अथवा आपके पूर्वजों से सर्प वध हुआ हो | उसकी शांति यह कर्म करने से हो जाती है |

संकल्प

देशकालौ संकीर्त्या सभार्यस्य ममेह जन्मनि जन्मान्तरे वा ज्ञानाद अज्ञानदा जात सर्पवधोत्थ दोष परिहाराथर्म सर्पं संस्कारकर्म करिष्ये |

अब आटे से बनाये हुये नाग को हाथ में अक्षत लेकर प्रार्थना करें – हे पूर्व काल में मरे हुए सर्प आप इस पिण्ड में आ जाएँ और अक्षत चढ़ाते हुए उसका पूजन करें | पूजन आप फूल, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से करें और नमस्कार करते हुए प्रार्थना करें कि हे सर्प आप बलि ग्रहण करो और ऐश्वर्य को बढ़ाओ | फिर उसका सिंचन घी देकर करें | फिर विधि नामक अग्नि का ध्यान हवन कुण्ड में करें और संकल्प करें – कि मैं अपना नाम व गोत्र बोलें और कहें – इस सर्प संस्कार होम रूप कर्म के विषय में देवता के परिग्रह के लिए अन्वाधान करता हूँ | अब “ ॐ भूः स्वाहा अग्नेय इदं “ बोल कर तीन आहुतियाँ दें और “ ॐ भूभूर्व: स्वः स्वाहा “ कह कर चौथी आहुति सर्प के मुख में दें फिर सुरवे में घी लेकर सर्प को सिंचन करें | गायत्री मंत्र पढ़ते हुए जल से पोषण करें और निम्न प्रार्थना को ध्यान पूर्वक पढ़ें |

जो अन्तरिक्ष पृथ्वी स्वर्ग में रहने वाले हैं, उन सर्पो को नमस्कार है | जो सूर्य की किरण जल, इसमें विराजमान है, उनको नमस्कार है | जो यातुधानों के वाण रूप है, जो वनस्पति और वृक्षों पर सोते हैं  उनको नमस्कार है | हे महा भोगिन रक्षा करो रक्षा करो सम्पूर्ण उपद्रव और दुख से मेरी रक्षा करो |पुष्ट जिसका शरीर है ऐसी पवित्र संतति को मुझे दो | कृपा से युक्त आप दीनों पे दया करने वाले आप शरणागत मेरी रक्षा करो |जो ज्ञान व अज्ञान से मैंने या मेरे पित्रों ने सर्प का वध इस जन्म या अन्य जन्म में किया हो, उस पाप को नष्ट करो और मेरे अपराध को क्षमा करो |  

अब उस नाग को होम अग्नि में भस्म कर दें और स्नान कर लें |

अब जो सोने ताँबे चाँदी के सांप बनाए थे उन्हे नजदीक किसी नदी में विसर्जन करें और निम्न मंत्र 3 बार पढ़ कर विसर्जन कर दें | यह मंत्र अति गोपनीय है |

नाग विसर्जन मंत्र

ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये दिवि येषां वर्ष मिषवः तेभ्यो दशप्प्रचि र्दशादक्षिणा दशप्रीतची र्दशोदीची र्दशोर्दुध्वाः तेब्भ्यो नमोsअस्तुतेनो वन्तुतेनो मृडायन्तुते यन्द्रिविष्मो यश्चनो द्वेष्टितमेषां जम्भेध्मः ||

जहां दिवि बोला गया है, दूसरी बार जब पढे तो अन्तरिक्ष और तीसरी बार पृथ्वी घोष करें  |

इसके साथ ही इस कर्म में सर्प सूक्त का पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है |

श्री सर्प सूक्त 

ब्रह्म्लोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा: |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||1||

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य: |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||2||

कद्र्वेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||3||

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य: |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||4||

सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||5||

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||6||

पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||7||

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||8||

ग्रामे वा यदि वारन्ये ये सर्पप्रचरन्ति |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||9||

स्मुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जलंवासिन: |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||10||     

रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला: |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||11||