तीसरे नेत्र का रहस्यमयी विज्ञान – आध्यात्मिक विज्ञान – 4 The Mystery of Third Eye – 4

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गुरु के लिए शिष्य का लगाया हुआ तिलक चार्ट का कार्य करता है जैसे एक हस्पताल में डॉ. चार्ट देख कर जिसमें मरीज की सारी जानकारी लिखी होती हैजैसे बुखार ,ब्लड प्रेशर आदि वो चार्ट देख कर ही दवाई लिख देता है | इसी तरह तिलक देख कर ही गुरु सब जान जाते हैं कि शिष्य को किस प्रकार की मदद चाहिए | किस चीज को बदलने की जरूरत है | तिलक का यह महत्त्व था | ध्यान मे जिन बदलावों को लाने की आवश्यकता है उनके बारे में निर्णय लेना | इस प्रकार तिलक शिष्य की दशा बदलने के लिए महान प्रयोग था |

तीसरे नेत्र का दूसरा पक्ष है उस व्यक्ति की इच्छा शक्ति का केन्द्र होना |योग में इस केंद्र को आज्ञा चक्र कहा है इस का यह नाम इस लिए है, क्योंकि हमारे शरीर में जो कुछ अनुशासन है वो इसी केंद्र से शासित होता है | हमारे शरीर में समस्वरता (harmony)और व्यवस्था है वो इसी बिन्दु से उठती है तीसरा केन्द्र इच्छा शक्ति का केन्द्र है | अब इसके कार्यों को समझते हैं |

जिन लोगो का इस जीवन में आज्ञा चक्र सक्रिय नहीं होता वो हजारो तरीकों से गुलाम रहते हैं | इस केन्द्र के बिना स्वतन्त्रता नहीं है | हम राजनैतिक और आर्थिक स्वतन्त्रता के बारे में जानते हैं  परंतु यह सच नहीं है |जिस व्यक्ति में इच्छा शक्ति नहीं हैजिस का आज्ञा चक्र सक्रिय नहीं हुआ वह एक न एक रूप में सदैव गुलाम बना रहेगा | वह एक तरह की गुलामी से स्वतंत्र हो भी जाए लेकिन फिर दूसरी गुलामी में फंस जाएगा क्योंकि वह अपनी इच्छा शक्ति का कोई केन्द्र  नहीं रखता जो उसे किसी चीज का स्वामी बना दे | जिस में इच्छा शक्ति नाम की कोई चीज नहीं होती उसमे अपने मन को आदेश देने की शक्ति नहीं होती | उसकी शरीर और इन्द्रियाँ उसको आदेश देते हैं  | यदि उसका पेट कहता है कि वो भूखा है तो वो भूखा है | यदि उसका शरीर कहता है वो रोगी है तो वो बीमार हो जाता है | यदि उसका शरीर कहता है उसे काम की आवश्यकता है तो उसमें सेक्स की इच्छा उठने लगती है यदि उसका शरीर कहता है वह वृद्ध हो गया है तो वह वृद्ध हो जाता है | शरीर आज्ञा देता है वह उसका पालन करता है |

लेकिन जैसे जैसे आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाता है शरीर आज्ञा देना बंद कर देता है और उसकी वजाए आज्ञा मानना शुरू कर देता है | सारी व्यवस्था बदल जाती है | जब शरीर उसके अधीन हो जाता है तो वह अपनी नबज़ खून और दिल की धड़कन तक को कंट्रोल कर सकता है | ऐसा व्यक्ति अपने शरीर मन और इंद्रियो का स्वामी हो जाता है लेकिन बिना आज्ञा चक्र के सक्रिय के ऐसा नहीं होता | आप जितना आज्ञा चक्र को स्मरण रखते हैं उतने ही अधिक अपने के स्वामी हो जाते हैं |

योग में इस केन्द्र को सक्रिय करने के अनेक प्रयोग दिये हैं | लेकिन जो व्यक्ति इस को बार बार याद रखता है तो परिणाम भी महान होते हैं | अगर इस स्थान पर तिलक लगा दिया जाए तो आपका ध्यान बार बार वहाँ जाएगा| जैसे ही इस स्थान पर तिलक लगाया जाता है वह स्थान शेष शरीर से अलग बन जाता है | यह बिन्दु शरीर का सब से अधिक संवेदनशील स्थान है इसलिए तिलक लगते ही आपको यह स्थान याद ही रखना पड़ेगा | इस स्थान पे तिलक लगाने की सैकड़ो विधियां हैंसैकड़ों प्रयोग करने के बाद चन्दन को चुना गया | चंदन के लेप और इस स्थान के बीच एक सबंध है | जब चंदन का लेप इस स्थान पर लगाया जाता है तो इस की संवेदनशीलता बढ़ जाती है| ऐसा नहीं है कि इस पर कोई भी चीज लगा दी जाए | कई बार दूसरी चीजे इस की संवेदनशीलता को हानि भी पहुंचा सकती हैं | उदाहरण के लिए इस स्थान पर औरतें ज्यादाकर बाजार से मिलने वाली बिंदी आदि लगाती हैं |जबकी बाजार से मिलने वाले टीके बिंदी का कोई वैज्ञानिक  आधार नहीं होता |उनका योग से कोई संबंध नहीं होता | इसलिए यह बिंदी आदि इस स्थान की संवेदनशीलता को हानि पहुंचाते हैं |

प्रश्नयह है कि कोई भी चीज इस केन्द्र की संवेदनशीलता को घटाती या बढ़ाती है अगर बढ़ाती है तो ठीक हैअगर घटाती है तो हानिकारक है | इस विश्व में एक छोटी सी चीज भी अंतर डाल सकती है | हर चीज का अपना असर होता है इस बात को ध्यान में रखते हुये कुछ वस्तुएं इस विषय में उपयोगी पायी गई हैं | अगर आज्ञा चक्र को सक्रिय कर दिया जाए और संवेदनशील बना दिया जाए तो आपकी भव्यता और सम्पूर्णता में विकास होगा| आप अपनी चेतना में और अधिक संपूर्णता अनुभव करना शुरू कर देंगे |आपकी चेतनता आपके दंदबिखराव ,विभाजन का जब अंत हो जाएगा तथा आप पूर्ण हो जाओगे  |

टीका और तिलक के उपयोग में साधारण सा अंतर है | टीका विशेष रूप में महिलाओं के लिए था | महिलाओं का आज्ञा चक्र बहुत कमजोर होता है क्योंकि इनका व्यक्तितव समर्पण के लिए रचा गया | उनका सोंदर्य समर्पण मे है ! अगर उनका आज्ञा चक्र शक्ति शाली हो जाता तो समर्पण करना कठिन हो जाएगा | इस लिए स्त्री हमेशा किसी न किसी का सहारा चाहती है | वो चाहती है कोई हो जो उसका नेतृत्व कर सके और आज्ञा पालन करने की इच्छा उसे प्रसन्नता प्रदान करती है | संसार में भारत ही एक मात्र देश है जिसमें महिलाओं के आज्ञा चक्र को सक्रिय करने की कोशिश की गई | ऐसा इसलिए किया गया कि जब तक इनके आज्ञा चक्र को सक्रिय नहीं किया जाएगा यह आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकती | क्योंकि ध्यान की साधना में इच्छा शक्ति के बिना कोई प्रगति नहीं कर सकता | इसलिए उसे शक्ति शाली और स्थाई बनाना जरूरी था | अगर उसे परूष की तरह साधारण रीति से शक्ति बनाया गया तो उसके स्त्रीत्व में कमी आ जाएगी और पुरुष जैसे गुणो का विकास होने लगेगा | अतः टीका अभिन्न रूप से स्त्री के पति से सम्बंधित था ! यह सांगता जरूरी थी | अगर उसे स्वतन्त्रता पूर्वक लगा दिया जाता तो वह उसकी स्वतन्त्रता को और बढ़ाता | उसको आत्मनिर्भर बनाता और वह जितनी भी स्वतंत्र हुई उसकी कोमलतासोंदर्य नगन्ता नष्ट हुई | इसलिए यह जरूरी समझा गया कि उसे सीधे शक्ति शाली बना देने से उसके स्त्रीत्व की हानि होगी उसके माँ बनने में समस्या होगी | उसे समर्पण करने में कठनाई होगी इसलिए उसकी इच्छा शक्ति को उसके पति के साथ जोड़ने की एक कोशिश की गई | यह दो प्रकार से सहायक था उसके स्त्रीत्व पर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा फिर भी उसका इच्छा शक्ति का केन्द्र सक्रिय हो जाएगा इसलिए महिलाओं में टीका महत्व पूर्ण स्थान रखता है |

बस आज के लिए इतना ही…..

नागेन्द्रनंद |