तीसरे नेत्र का रहस्यमयी विज्ञान – आध्यात्मिक विज्ञान – २ The Mystery of Third Eye -2

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जब तीसरा नेत्र जाग्रत अवस्था में आ जाता है तो किसी भी व्यक्ति का औरा अर्थात प्रभा मण्डल देखने की शक्ति आ जाती है | कोई भी व्यक्ति आपको धोखा नहीं दे सकता | क्योंकि वह जो भी कहता है, वह उस समय तक अर्थहीन है | जब तक वो उसके प्रभामण्डल के अनुकूल नहीं है | अगर वो कहता है कि वो गुस्सा नहीं करता परंतु उसके प्रभामण्डल का लाल रंग दिखा देता है कि उसमे कितना गुस्सा है | जहां तक उसके प्रभामण्डल का सवाल है वो धोखा नहीं दे सकता, क्योंकि वो प्रभामण्डल के बारे में कुछ नहीं जानता | वो जो भी कहता है उसके प्रभामण्डल से जांचा परखा जा सकता है कि वो सही है या गलत | आप अपने तीसरे नेत्र से विकिरण (radiation) और प्रभा मण्डल (aura) आदि देखने लग जाते हैं |

एक बात बहुत ही ध्यान रखने योग्य है कि जब कभी तीसरा नेत्र बंद होता है और अचानक उसमें ऊर्जा  जाती है | इस तरह से कई बार छिद्र हो सकते हैं | यह ऊर्जा अंदर से निकलती हुई बुलेट (बंदूक की गोली की तरह होती ) है | यह एक संग्रहित केन्द्रित अग्नि होती है | इससे छिद्र हो सकता हैअतः जब आप तीसरे नेत्र से देखने का अभ्यास करते हैं तो इस बात का खास ध्यान रखें कि यदि आपको इस स्थान पर जलन का आभास हो तो डरे नहीं |  हाँ अगर आपको इस तरह लगे की यह ऊर्जा ऐसी अग्नि की तरह हो गई है जो बाहर निकलने वाले सक्रिय बुलेट की तरह लगती है तो अभ्यास तुरंत बंद कर दें | अगर आपको लगता है , कि एक बुलेट वहाँ है जो माथे को फोड़ कर बाहर आना चाहती है तो साधना बंद कर देनी चाहिए | आंखे खोल कर जितना उन्हे गति शील कर सकते हैंइधर उधर घुमा सकते हैंघुमाएँइससे आपको होने वाला अनुभव दूर हो जाएगा और आप रिलैक्स हो जायेंगे | और जब तक आपको योग्य मार्ग दर्शक नहीं मिलता तब तक आप अभ्यास ना करें क्योंकि इस से कपाल टूटने का खतरा रहता है |

अगर ऐसा हो जाए तो यह गलत नहीं क्योंकि व्यक्ति ने ऐसी चीज प्राप्त कर ली है जो मृत्यु से परे है | लेकिन उचित यही है कि जब भी आप यह अनुभव करें कि कुछ गलत घटने वाला है तो अभ्यास तुरंत रोक दें | यह बात इसी साधना पर नहीं बल्कि सभी साधनायों पर लागू होती है | किसी भी विधि को करते वक़्त अगर आपको यह अनुभव हो कि इससे  गलत होने वाला है तो साधना बंद कर देनी चाहिए|

भारत में कई विधियाँ सिखाई जाती हैं | साधक उनसे अनावश्यक कष्ट पाते हैंक्योंकि जो उनको प्रशिक्षण देते हैं, उन्हे खतरे तक का पता नहीं है | और साधक भी आंखे बंद कर उनका अनुसरण करते हैं वह नहीं जानते कि वह किधर जा रहे हैं|  क्या कर रहे हैं | इसलिए अगर ऐसा लगे तो जब तक मैं ना कहूँ अभ्यास ना करें |

तीसरे नेत्र को खुलते हुए अनुभव करना – 

संसार को परमात्मा की दी हुई यह सब अनेकों देनों में से एक है –कि  दोनों आँखों के मध्य तीसरी आँख भी है, जिसका आंतरिक अंश साधारणतय निष्क्रिय रहता है |व्यक्ति को इसके  लिए कठिन साधना करनी पड़ती है | अपनी सारी काम ऊर्जा को गुरुत्वाकर्षण के विपरीत उपर की और लाना होता है और जब वह ऊर्जा तीसरी आँख तक पहुँचती है तो वह खुल जाती है और जब वह खुलती है तो एक प्रकाश की चमक होती है | जो चीजें आपके लिए पहले स्पष्ट नहीं थी वो स्पष्ट होने लग जाती हैं |
शीर्ष आसन से खतरा  ज्यादातर योग प्रशिक्षक शीर्ष आसन का अभ्यास कराते हैं |जिसका मूल आधार इस ऊर्जा को तीसरी आँख तक लाना होता है | पर ऐसा किसी ग्रंथ में नहीं लिखा है | यह तो एक गुरु द्वारा एक शिष्य के कानो में फुके जाने वाले अन्य रहस्यो में से एक है | इसकी और भी बहुत सी विधियां हैं | जब मैं देखने का साक्षी बनने पर ज़ोर देता हूँ | यह तृतीय  नेत्र जागरण करने की सब से सुंदर विधि हैक्योंकि जो देखना है अंदर देखना है, ऊपरी आँखें सिर्फ बाहर की और देखती हैं, इसलिए इन्हें बंद करना होगा | जब आप अपने अंदर देखने का प्रयत्न करते हैं तो इसका अर्थ है कोई आँख जैसी चीज है जो देखती है | आपके विचार कौन देखता है ? यह आंखे तो नहीं देखती, यह कौन देखता है कि आपके अंदर गुस्सा उठ रहा है |देखने का स्थान प्रतीकात्मक रूप  में तीसरा नेत्र कहा जाता है | अपने प्रति साक्षी होना सबसे  सूक्ष्म विधि है क्योंकि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर होना खतरनाक हो सकता है | यदि एक बाढ़ की तरह बहुत अधिक ऊर्जा बहती हुई नीचे आती है | वह आपके मष्तिष्क के छोटे छोटे स्नायुओ को नष्ट कर सकती है | यह स्नायु इतने अधिक कोमल होते हैं , जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती ! आपके छोटे से सिर में करोड़ो स्नायु हैं जिन्हें  आँख नहीं देखती | यह बहुत ही संवेदनशील और कोमल होते हैं अगर ऊर्जा की बाढ़ आ जाए तो उनमें से बहुत से बह  जायेंगे या टूट जायेंगे |

विज्ञान भी एक दिन इस क्षेत्र में प्रवेश करने वाला है उन्होंने इस पर खोज करनी शुरू कर दी है कि  पशुओं ने अपने मष्तिष्क को विकसित क्यों नहीं किया |इसका कारण है कि पशुओं का शरीर धरती के समांतर होता है | उसमें ऊर्जा सभी अंगो में समांतर चलती है अतः मष्तिष्क के वह कोमल कोष विकसित नहीं हो सकते |

यह सब इसलिए हुआ कि मनुष्य अपने दोनों पैरों पर खड़ा है, इसलिए उसका मष्तिष्क गुरुत्वाकर्षण से इतना प्रभावित  नहीं हुया | क्योंकि वहाँ बहुत कम गुरुत्वशक्ति पहुँचती है | इसलिए मष्तिष्क के कोमल स्नायु को विकसित होने का अवसर मिल गया |इसलिए हर व्यक्ति को शीर्ष आसन लगाने का सही टाइम पता होना चाहिए | मेरे ख्याल से तीन सेकेंड बहुत हैं और इससे कहीं बेहतर है जब जरा सा ऊर्जा का बहाव हुआ तो आप सीधे हो जायें अपने पैरों पर यह थोरा सा बहाव आपके मष्तिष्क को पुष्ट करेगा और तीसरी आँख खोलने में हेल्प करेगा | कभी सोचा आपने कि सोते वक़्त तकिया क्यों इस्तेमाल किया जाता है |  क्योंकि जब आप बिना तकिये की सहायता के सोते हो तो आप में ऊर्जा पशुओं के समान बहाव में हो जाती है और 8 घंटे में आपके स्नायु नष्ट कर देती है | इसलिए तकिया एक कवच का काम करता है | इस पर निर्भर करता है कि आपका स्नायु तंत्र कितना कोमल है |आप जितने अधिक बुद्धिमान हैंउतनी ही कम जरूरत है शीर्ष आसन की | मैं कभी शीर्ष आसन इस्तेमाल नहीं करता क्योंकि मैं देखने की बात कहता हूँ , इस देखने की कला से ही आपकी तीसरी आँख खुलने लग जाती है | तीसरी आँख को बाहर से स्पर्श कर जगाना जानता हूँ , पर यह भी तभी है जब व्यक्ति ध्यान आदि क्रिया कर्ता है और मैं समझता हूँ कि किसी भी बिन्दु पर अधिक दबाव डालना कभी कभी अचेतन अवस्था में ले जाता है क्योंकि जो साधक केवल गुरु से इस सम्बन्ध से दीक्षा लेते हैं खुद कुछ नहीं करते और तरह तरह के ऊर्जा प्रति सवाल पुछते हैं तो कोई भी अचेतन अवस्था में जा सकता है | क्योंकि इस बिन्दु पर बहुत अधिक आघात नहीं किया जा सकता | इससे ऊर्जा मंद पड़ जाती है और ऊर्जा जब बहुत अधिक धीमी हो जाती है तो कुछ भी घटित नहीं होता | इसलिए दीक्षा के बाद ध्यान आदि क्रियाएँ करना जरूरी है | यही साधना है और सद्गुरु जी का दिया उपदेश है | गुरु जब आपको देखते हैं तो यह भी एक स्पर्श क्रिया ही है क्योंकि आंखो से ही वो दूर से स्पर्श कर लेते हैं और शक्तिपात अपने आप हो जाता है | इसलिए कहता हूँ , कि बस अपनी आँखें बंद कर देखने की कोशिश करो और तीसरी आँख अधिक से अधिक सक्रिय हो जाएगी और यह तीसरी आँख के अनुभव ही उच्च स्तर  की आध्यात्मिकता के द्वार खोल देगा |

क्रमशः  ||