चतुःषष्टि योगिनी पूजनम एंव साधना

Posted on Posted in Shakti Sadhna


आवाहन मंत्र  

अग्नि कोण में चतुःषष्टि योगिनी का आवाहन करे | 

आवाहयाम्यहं देवी योगिनी परमेश्र्व्रीम |

योगाभ्यासेन संतुष्टा परध्यान समविंता ||

दिव्य कुण्डल संकाशा दिव्य ज्वाला त्रिलोचना |

मूर्तिमती ह्रामुर्ता च उग्रा चैवोग्ररूपिणी ||

अनेकभाव संयुक्ता संसारावर्ण तारिणी |

यज्ञे कुर्वन्तू निर्विघ्नं श्रेया यच्छ्न्तु मातर: ||

 

अब गंध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, लाल फूल आदि से पूजन करें |

ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः गंधम समर्पयामि | (चन्दन आदि गंध चढ़ाये )

ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः अक्षत समर्पयामि |

ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः पुष्पा समर्पयामि |

ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः धूपम  आघ्रापयामि |

ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः  दीपं समर्पयामि |

ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः नवेद्म  समर्पयामि |

ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः आचमनी जल समर्पयामि |

ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः ऋतु फलांनि  समर्पयामि |

ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः तंबुलाम समर्पयामि |

 

अब निम्न योगिनी मंत्र का 21 जप करें | ऐसा नित्य कर्म में शामिल कर 41 दिन करें और बली देकर योगिनियों को संतुष्ट करें | बलि के लिए एक पीपल के पते पर दही, उड़द (काली दाल), अक्षत और घी की एक बत्ती जगाकर बलि मंत्र से बलि अर्पण करें | ऐसा करने से योगिनिओं की कृपा प्राप्त होती है | इसमें कोई संदेह नहीं है | यह एक आसान और सरल विधान है |

चतुःषष्टि योगिनी स्तोत्र मंत्र

आवाह्याम्य्हम देवी योगिनी परमेश्वरिम |

योगाभ्यासेन संतुष्टा परध्यान समन्विता ||

दिव्य कुंडल संकाशा दिव्य ज्वाला त्रिलोचना |

मूर्तिमती ह्रामुर्ता च उग्रा चैवोग्ररूपिनी ||

अनेकभाव संयुक्ता संसारावर्ण तारिणी |

यज्ञे कुर्वन्तु निर्विघ्नं श्रेया यच्छन्तु मातरः ||

दिव्य योगी महायोगी सिद्धयोगी गणेश्वरी |

प्रेताशी डाकिनी काली कालरात्रि निशाचरी ||

हुंकारी सिद्धबेताली खर्परी भूतगामिनी |

उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी शुष्कांगी मासभोजिनी ||

फूत्कारी वीरभद्राक्षी धूम्राक्षी कलहप्रिया |

रक्ता च घोररक्ताक्षी विरुपाक्षी भयंकरी ||

चोरिका मारिका चंडी वाराही मुंडधारिणी |

भैरवी चक्रिणी क्रोधा दुर्मुखी प्रेतवासिनी ||

कलाक्षी मोहिनी चक्री कंकाली भुवनेश्वरी |

कुंडला तालकुमारी यमदूती करालिनी ||

कौशिकी यक्षिणी यक्षी कौमारी यंत्रवाहिनी |

दुर्घटे विकटे घोरे कम्पाले विष लंघने ||

चतु:षष्टि स्माख्याता योगिन्न्यो हि वरप्रदा |

त्रिलोक्यपूजिताः नित्यं देवमानुष योगिभिः ||

     
          

*********इति शुभम ********