यह साधना बहुत ही लाजबाब है | इसके बहुत से लाभ मैंने महसूस किए हैं | यह साधक में उच्चतम ज्ञान को विकसित करती है | वहीँ ध्यान को परम उच्च अवस्था तक पहुंचा देती है | यह साधक को पूर्ण सुरक्षा देती है | उसकी याददाश्त को तेज करती है | तृतीय नेत्र जागरण में भी सहायक है | इसके मैंने बहुत लाभ महसूस किए हैं | जीवन में अगर उच्च साधनात्मक अवस्था चाहिए तो भगवती और गणेश जी के इस स्वरूप की साधना करनी ही चाहिए | इसे किसी भी बुधवार अथवा शुक्रवार को करें | गणेश चतुर्थी के दिन इस साधना को करें तो बहुत लाभ मिलता है |
विधि
१.इस साधना को शाम सुबह कभी भी किया जा सकता है, ब्रह्म मुहूर्त विशेष फलदायी रहता है |
२.साधना काल में सफ़ेद वस्त्र धारण करें | आसन भी सफ़ेद लें |
३.दिशा उत्तर की तरफ मुख करें |
४.अपने सामने एक बाजोट पर सफ़ेद या पीला वस्त्र बिछाकर सद्गुरु जी और गणेश जी, माँ सरस्वती का चित्र स्थापित करें | गुरु और गणेश पूजन के बाद माँ सरस्वती का पूजन करें |पूजन धूप, दीप, नैवेद्य, फल, फूल आदि से करें | साधना में सफलता के लिए प्रार्थना करें |
५.फिर पाँच माला गुरु मंत्र का जप करें |
६.भोग खीर का लगाएं |
७.आपको सफ़ेद हकीक की माला से जप करना है |
८. 5 माला जप करें | यह साधना आप 21 दिन अथवा 41 दिन अपनी सुविधा अनुसार करें |
९.साधना में बहुत अनुभव होंगे | कई बार शरीर इतना शीतल हो जाता है कि उठा नहीं जाएगा | ऐसी हालत आने पर जब साधना जप पूर्ण हो तो कुछ देर तक गुरु मंत्र या चेतना मंत्र का जप करते रहें | 10 – 15 मिनट में शरीर नॉर्मल हो जाता है | कई बार साधना काल में कुछ अजीब से दृश्य दिख सकते हैं , घबराएं नहीं |
साधना के बाद चित्र पूजा स्थान में रख दें | समस्त पूजन सामग्री जैसे फूल आदि जो आप रोज चढ़ाते थे, जल प्रवाह कर दें | दूसरे दिन के पूजन से पहले आप पहले दिन की पूजन सामग्री उठाकर किसी पात्र में रख दें | इसी तरह साधना पूर्ण होने तक जो भी सामग्री हो उसे वस्त्र में बांध कर नदी के किनारे वस्त्र खोल कर जल में बहा दें और वस्त्र अलग से नदी में छोड़ दें |
इस तरह साधना सम्पूर्ण हो जाती है और हर साधना में सफलता का रास्ता खोल देती है |
मंत्र
ॐ सरस्वती माई स्वर्ग लोक बेकुंठ से आई |
शिव जी बैठे अंगूठ मरोड़ ,
देवता आया तेतिस करोड़ |
संतो की जो रक्षा करे ,दंतों का भक्षण करे ,
शिव शक्ति बिन कोण थी |
जीवा ज्वाला सरस्वती हिरदे वसे हमेश,
भूली वाणी कंठ करावे गौरी पुत्र गणेश |
यह मेरी ही नहीं कई उच्च कोटी के संतो द्वारा अनुभूत साधना है | विश्वाश ही साधना का आधार होता है | इसलिए पूर्ण विश्वाश से ही साधना करे |