समर्पण – 5


बाबा अखंडानन्द जी ने अनेक गुरुदुआरे के कार सेवक बाबा लाभ सिंह जी दिल्ली वालों की अगवाई में बनाये थे, जैसे आनंदपुर का गुरुदुआरा बयुली साहब गुरुद्वारा केसगद, काटता सभोर में कतार साहब जीरी साहब और देश की सेवा में आजाद हिंद सेना में सैनिक रहकर देश की आज़ादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया | उनको सरकार की तरफ से जमीन दी गई थी जिस पर किसी ने धोखे से उनकी सेवा करने का नाटक करके कागज पर दस्तखत करा लिए थे | जिसने इतना सब कुछ किया आज गुमनामी में ही हम सबसे विदा ले गया था |

दुसरे दिन सभी गुरु भाइयों को बुलाकर उनके अंतिम संस्कार के लिए चल पड़े | मुश्किल से 25-30 लोग उनके पीछे थे | दुःख हो रहा था मगर इस बात से सकून भी था कि वो लावारिस नहीं थे | हम सभी उनके साथ थे | संस्कार के बाद सभी अपने घरों को चले गये और हम दो दिन बाद उनकी अस्थियाँ लेकर संभाल कर मंदिर में ही रख दी | फिर उचित समय देखकर उनके विसर्जन के लिए हुस्नचन्द, मैं और मेरा गुरु भाई परमजीत हरिद्वार के लिए चल दिए | सुबह के वक़्त हम पहुंचे और चढ़ते  सूरज के साथ ही पूजन कराकर अस्थि विसर्जन कर दिया और वहां स्नान करके हर की पोड़ी की तरफ आ गये और वहां स्नान  किया और वस्त्र पहन कर जैसे ही वहां से चले सीढियों के पास ही एक सन्यासी खड़े हमको देखकर मुस्कुरा रहे थे | देखने में चेहरा गुरूजी से काफी मिलता था | हमने दूर से ही नमस्कार किया और बाजार में आकर ॐ नमो शिवाये नाम की दूकान पर  यंत्र आदि खरीदने  लगे | जब बाहर आये वो दिव्य पुरुष सामने  खड़े थे और उसी तरह मुस्कुरा रहे थे | हम फिर पास से निकल गये और स्टेशन की तरफ जाने लगे | वो हमसे काफी पीछे रह गये थे | मन चाय पीने का किया और जैसे ही चाये पीने के लिए दुकान पर गए जोकि स्टेशन के पास थी वो वहां भी सामने थे | हम बहुत जल्दी आये थे मगर यह हमसे पहले यहाँ कैसे पहुँच गये और वो हमे देखकर मुस्कुरा रहे थे | मैंने हुस्नचन्द जी से कहा कि चलो इन्हे मिल लेते हैं | उस दिव्य पुरुष ने हमको आने का इशारा किया मगर हुस्नचन्द जी बहुत भोले थे और जैसे उन्होंने उन्हें पहचान लिया था | मुझे कहने लगे मैंने इनको पहचान लिया है, यह हमारे गुरूजी ही  हैं | जल्दी से भागो नहीं तो यह हमारे झोले की तलाशी जरुर लेंगे और जो यंत्र आदि लिए हैं सब गंगा जी में फेक देंगे और कहेंगे कि मेरे होते हुए तुम यह यंत्र क्यों खरीद रहे हो इन दुकानों से और हम गुरूजी को देख कर भाग लिए | ऐसा शायद मेरे जीवन में पहली बार हुआ था जब भोलेपन में हम गुरुजी को देखकर भागे हों | जल्दी से बिना चाये पिए गाड़ी में चढ़ गये और अपने सफर की तरफ वापिस आ रहे थे | हुस्नचन्द जी पेहवा को चले गये अखंडानन्द जी की गति करने के इरादे से कि बाबा जी को यह ना लगे कि हमारा कोई नहीं और मैं मंदिर में आ गया |

रात्रि को हुस्नचन्द जी भी आ गये | हम सो रहे थे, थकावट काफी हुई थी मगर किसी ने मेरे को पैर से दो बार ठोकर से जगाया | मैंने हुस्नचन्द की तरफ देखा वो भी लेटा था और मैं भी सोने के लिए आंखे बंद कर ली मगर फिर हुस्नचन्द जी उठकर बैठ गये | मैंने थोड़ी खुली आँखों से देखा गुरूजी सामने आसन पर  बैठे थे और हुस्नचन्द सामने बैठा था | मैं भी लेटा हुआ बातें सुन रहा था | मुझे मालूम था अब क्लास लगेगी | गुरूजी कहने लगे मुझे देखकर भागे क्यों थे, तो हुस्नचन्द कहने लगा गुरूजी ये कहता था गाड़ी निकल जायेगी इसलिए हम भागे थे | मैं सब  जानता हूँ कौन सी गाड़ी निकलनी थी गुरुजी ने कहा और तुम दुकान से यंत्र क्यों खरीद रहे थे | हुस्नचन्द सोच रहा था अब फंसे मगर गुरूजी बहुत ही करुनामय हैं उन्होंने हंसकरअपने पास से कुछ दिव्य यंत्र निकाले और हुस्नचन्द को पकड़ा कर कहने लगे इन्ही के लिए भागे थे लो जितने लेने हैं | जो चाहिए मुझसे मांग लिया करो और २० के करीब यन्त्र और दो रुद्राक्ष  की मालाएं दी और मुस्कुरा कर अदृश्य हो गये | सुबह हुस्नचन्द कहने लगा, आप तो तू लेटा रहा सोने का बहाना बनाते हुए, गुरु ने मेरी खूब क्लास लगाई  और यह यंत्र भी दिए जो बहुत ही दिव्य थे | जिनमें कल्पवृक्ष यंत्र, श्रीयंत्र और भी कई ऐसे दिव्य यंत्र थे | हमने गुरूजी का आशीर्वाद समझते हुए मंदिर के (दान पेटी )गोलक में रख दिए जो आज भी उनके आशीर्वाद के रूप में हमारे पास हैं |

ऐसा कई बार हुआ | कभी गुरूजी सुंदर भजनों की कसेट  दे जाते, कभी कुछ और हुस्नचन्द भी रात्रि को मस्त होकर भजन करता रहता, आँखों से आंसु निकल कर गालों पर आ जाते जब तक गुरूजी नहीं आते और ऐसे ही उनसे कभी कभी गहन विचार और विधा पर चर्चा होती रहती | कभी कभी उनसे पारद विज्ञान के बारे में भी पूछकर प्रयोग करते रहते थे | अब आप सोचे कि गुरूजी कहाँ हैं वो हमेशा अपने शिष्यों का ख्याल रखते हैं और सशरीर प्रकट भी होते हैं | मैंने खुद अपनी आँखों से उन्हें देखा है | यह बात कोई माने य़ा ना माने, उनके दुआरा प्रदान की हुए वस्तुएं आज भी हमारे पास सुरक्षित हैं जो उन्होंने सिद्धाश्रम जाने के बाद सशरीर आकर दी | आज इतना ही |

बाकी अगले लेख में

(क्रमशः)