देवता का यह रूप संपूर्ण पृथ्वी का अधिपति है | जो साधक जीवन में पृथ्वी भ्रमण की इच्छा रखता हो, विदेश यात्रा करना चाहता हो या विदेश यात्रा में कोई रुकावट आ रही हो तो उसे यह साधना करनी चाहिए | यह सभी यात्रा की रुकावटें दूर करती है | इस साधना के आध्यात्मिक लाभ भी हैं | इससे साधक अपने सूक्ष्म स्वरूप से जुड़ जाता है और दूर आध्यात्मिक स्थानों की यात्रा कर लेता है | यह एक श्रेष्ठ साधना मानी गई है | इसी तरह सभी नाग साधना के आध्यात्मिक लाभ भी हैं जिन्हें साधक को खुद अनुभव करना चाहिए | यहाँ मैं आपके कार्य की बाधा दूर करने और कुछ भौतिक लाभ ही बता रहा हूँ |
ज्योतिष विवेचन
चतुर्थ स्थान से दशम स्थान तक पड़ने वाली ग्रह स्थिति के कारण शंख पाल नामक नाग दोष या काल सर्प योग का निर्माण होता है | इसके कारण सुख में बाधा, माता, वाहन, नौकर चाकर को लेकर परेशानी रहती है | पिता या पति की ओर से कष्ट, विद्या अध्ययन में तकलीफ, व्यापार व्यवसाय में नुकसान की संभावना बनी रहती है | अपने ही आदमी जिन पर ज्यादा भरोसा हो विश्वासघात करते हैं | दिमाग परेशानी एवं तनाव की स्थिति में रहेगा | कितना भी प्रयत्न कर लें पर सुख प्राप्ति को लेकर जीवन में संघर्ष की स्थिति बनी रहती है | विदेश यात्रा में रुकावट रहती है |
इस साधना से यह तमाम कष्ट दूर होते हैं और मन की इच्छा पूर्ण होती है |
साधना विधि
1. यह साधना गुरुवार को करें | एक दिन की साधना है |
2. इसमें साधना सामग्री जो लेनी है लाल चन्दन की लकड़ी के टुकड़े, काला रंग का धागा, पीला और हरा धागा जो तकरीबन 8-8 उंगल का हो | कलश के लिए नारियल, लाल वस्त्र व सफ़ेद वस्त्र, पूजन में फल, पुष्प, धूप, दीप, पाँच मेवा आदि |
3. सबसे पहले पूजा स्थान में एक बाजोट पर सफ़ेद रंग का वस्त्र बिछा दें और उस पर एक पात्र में चन्दन के टुकड़े बिछा कर उस पर एक आठ मुख वाला नाग का रूप आटा गूँथ कर बना लें और उसे स्थापित करें | साथ ही भगवान शिव अथवा विष्णु जी का चित्र भी स्थापित करें | उसके साथ ही एक छोटा सा शिवलिंग एक अन्य पात्र में स्थापित कर दें |
4. पहले गुरु पूजन कर साधना के लिए आज्ञा लें और फिर गणेश जी का पंचौपचार पूजन करें | उसके बाद भगवान विष्णु जी का और शंकर जी का पूजन करें |
5. पूजन में धूप, दीप, फल, पुष्प, नवैद आदि रखें | प्रसाद पाँच मेवों का भोग लगाएं |
6. यह साधना गुरुवार शाम 7 से 10 बजे के बीच करें | किसी कारण रात्रि साधना न कर सकें तो दिन में भी साधना की जा सकती है | अगर साधना दिन में करते हों तो साधना के बाद नाग को जलप्रवाह उसी दिन कर देना चाहिए और घर आकार शिवलिंग का अभिषेक करें घी से | बाद में शुद्ध जल से स्नान करा पूजन करें |
7. माला रुद्राक्ष की उतम है और 7, 11 या 21 माला मंत्र जाप करना है |
8. दीप साधना काल में जलता रहना चाहिए |
9. श्रीशंखपाल नाग का पूजन करें | वेदी के पश्चिम दिशा में नाग को स्थान देना चाहिए | वेदी के बीच श्री गणेश को, वेदी के ईशान कोण में मनसा देवी की स्थापना करनी है | अपना मुख पूर्व की ओर रखना है |
साधकों की सुविधा के लिए नाग पूजन दिया जा चुका है | अब शंख पाल नाग का आवाहन करें | हाथ में अक्षत, पुष्प लेकर निम्न मंत्र पढ़ते हुए नाग देवता पर चढ़ाएं |
आवाहन मंत्र
ॐ शंख पालं क्षत्रियं च पत्र सप्तै शतैः फ़नै: |
युक्तमुतुंग कायं च शिरसा प्रणमाम्यह्म्||
ॐ शंख पालाय नमः आवाहयामि स्थापयामि नमः |
ईशान्यां अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः | प्रतिष्ठः || प्रतिष्ठः ||
अब हाथ में अक्षत लें और प्राण प्रतिष्ठता करें |
प्राण प्रतिष्ठा मन्त्र
ॐ मनोजुतिर्जुषता माज्यस्य बृस्पतिर्यज्ञ मिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञ ठरं समिनदधातु |
विश्वेदेवसेऽइहं मदन्ता मों प्रतिष्ठ ||
अस्मै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्मै प्राणाः क्षरन्तु च,
अस्ये देवत्वमर्चाये मामहेति च कश्चन ||
मनसा देवी पूजन
अब ईशान कौण में एक अष्ट दल कमल अक्षत से बनायें और उस पर एक ताँबे या मिटटी के कलश पर कुंकुम से दो नाग बनाकर अमृत रक्षणी माँ मनसा की स्थापना करें | कलश पर पाँच प्लव (आम आदि के 5 पत्ते) रख कर नारियल पर लाल वस्त्र लपेट कर रख दें | हाथ में अक्षत, कुंकुम, पुष्प लेकर मनसा देवी की स्थापना के लिए निम्न मंत्र पढ़ते हुए अक्षत कलश पर छोड़ दें |
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः | प्रतिष्ठः || प्रतिष्ठः ||
अब मनसा देवी का पूजन पंचौपचार से करें |
एक जल की आचमनी चढ़ाएं
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः ईशनानं स्मर्पयामी ||
चन्दन से गन्ध अर्पित करें
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः गन्धं समर्पयामि ||
पुष्प अर्पित करें
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः पुष्पं समर्पयामि ||
धूप
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः धूपं अर्घ्यामि ||
दीप
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः दीपं दर्शयामि ||
नवैद्य— मेवों या दूध् से बना नवैद अर्पित करें |
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः नवैद्यं समर्पयामि ||
अब पुनः आचमनी जल अर्पित करें |
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि ||
अब नाग पूजा बताई हुई विधि से करें | अगर किसी कारण पूर्ण पूजा न कर पायें तो पंचौपचार पूजन कर लें | वैसे साधना का पूर्ण लाभ लेने के लिए पूजन विधि अनुसार ही करें |
अब काला, पीला व हरा धागा नाग को अर्पित करें | यह धागा पूंछ की तरफ ही अर्पित करना है या चढ़ा देना है | रुद्राक्ष की माला से निम्न मंत्र का जप करें |
साधना मंत्र
|| ॐ शं शं शं हं शंख नागाये नमः ||
जप समाप्ति पर माला को गले में पहन लें और यह माला पहन कर ही सोयें | जब साधना पूर्ण हो जाए तो शिवलिंग का पंचौपचार पूजन करें और घृत से अभिषेक करें | अभिषेक करते हुए आप “ॐ नमः शिवाये” मंत्र का जाप करते रहें या शिवकवच से भी अभिषेक किया जा सकता है, नहीं तो लघु रुद्रा अभिषेक स्तोत्र पढ़ते हुए भी किया जा सकता है | इसके बाद अगर आप चाहो तो सर्प सूक्त का पाठ कर लें | सोते हुए माला गले में रहे | दूसरे दिन आप उस नाग की आकृति को किसी नदी पर जाकर जल प्रवाह कर दें समस्त पूजन सामग्री के साथ जो पूजन किया है वह पुष्प, अक्षत आदि आदि | कलश का जल घर में छिड़क दें या किसी पौधे को डाल दें | इस प्रकार यह साधना पूर्ण हो जाती है और जीवन में विदेश यात्रा का योग बनता है और भ्रमण आदि की इच्छा पूर्ण होती है | यह साधना एक अनुभूत साधना है |