प्रेम जीवन की सर्वोतम निधि है ! जो आपको कुदरत को समझने की कला सिखाती है ! प्रकृति में पल-पल घट रही घटनाओं का साक्षिभूत बना देता है ! एक प्रेम ही है जो बादल की गडगडाहट को दिल से समझने का इशारा करता है , रिम झिम वर्षा के संगीत का आनंद लेता है , हवा में गुनगुनाते मधुर संगीत और ऊंचे पेड़ों के साथ ताल करते हुये बिना वाद्यों के हो रहे मधुर गान को सुनने की क्षमता अगर कोई देता है तो वह प्रेम ही है ! कहीं कोयल का गीत, कहीं भँवरे की गुंजन, कहीं समुंदर में चल रही लहरें , कहीं झरनों की कलरव ध्वनि, कहीं चंद्रमा की चाँदनी की शीतलता, कहीं खिले हुये हजारों हजारों फूल, यह सभी उस प्रकृति के सौंदर्य को हजार हजार अनकहे शब्दों में व्याख्यान करते हैं और इसके इन अनकहे शब्दों को समझने के लिए दिल में प्रेम पैदा होना जरूरी है !
जब प्रेम ओर सौंदर्य की बात हो तो अप्सरा का नाम अपने आप होठों पर आ जाता है, क्योंकि अप्सरा ही प्रेम की साक्षात् मूर्ति होती है और कुदरत के इस सौंदर्य को समझने की क्षमता साधक में पैदा करती है ! तभी तो हमारे ऋषियों ने समय समय पर अप्सरा साधना की , क्योंकि प्रकृति से एकाकार होने के लिए उसको समझना बहुत जरूरी है और बिना प्रेम के प्रकृति के सौंदर्य को समझना असंभव है ! यह एक भ्रान्ति है कि एक अप्सरा साधक की तपो उर्जा को नष्ट कर देती है ! नहीं , ऐसा नहीं है ! अप्सरा तो साधक के मनोबल को और बढा देती है ! उसे उसके साधना कर्म को और गहराई से समझने में सक्षम बनाती है, तभी तो विश्वामित्र ने अप्सरा का वरण स्वीकार किया क्योंकि वो जानते थे , जीवन में जो समर्पण चाहिए वो अप्सरा के बिना नहीं आ सकता ! अप्सरा ने ही उन्हें राज योग को समझने का अवसर दिया और वो राज ऋषि कहलाये ! अप्सरा ने उनका तप नष्ट नहीं बल्कि तप को और वेग से करने की प्रेरणा दी, तभी तो उनकी बेटी शकुंतला की संतान भरत से इस देश का नाम भारत वर्ष पड़ा !
यह सारभूत देने का मेरा मकसद इतना है कि अप्सरा साधनाओं के प्रति भ्रान्ति मिट सके ! कहते हैं प्रेम को सिर्फ प्रेममय होकर ही समझा जाता है ! वासना के वेग को प्रेम नहीं कहते और अप्सरा साधना एक बार सिद्ध होने पर वासना रुपी विष को प्रेम रुपी अमृत में बदल देती है ! अप्सराओं की उत्पत्ति जल से हुई ! समुंदर मंथन के वक्त अमृत के साथ अप्सराएं भी निकली, इसलिए जल से इनका गहरा सम्बन्ध है ! जब चाँद पूर्ण यौवन पर होता है तो समुंदर के जल को आकर्षित करता है ! फलस्वरूप समुंदर में ज्वारभाटा आ जाता है ! इसी तरह इनकी साधना अगर एकादशी से पूर्णिमा तक करें तो सफलता की संभावनाएं कहीं बढ़ जाती हैं ! बस इनकी साधना से पहले अपने आपको तैयार करना जरूरी है ! इसके लिए दिल से व्यर्थ की भ्रांतियां निकाल कर पूर्ण प्रेम से अपने आपको साधना के प्रति आश्वस्त करते हुए इनकी साधना करें ! अप्सरा समर्पण का नाम है ! यह साधक में समर्पण आदि गुण को विकसित करती है ! मेनका अप्सरा साधना आप एक बार जरूर करें !
–विधि–
इसके लिए आपको चाहिए मेनका यन्त्र, स्फटिक की या सफ़ेद हकीक की माला ले लीजिए ! और अगर मोतियों की माला हो तो और भी उत्तम है !
आपकी सुविधा के लिए मेनका यन्त्र में यहाँ साथ में दे रहा हूँ ! इसे आप भोजपत्र पर बना लें और इसकी प्राण प्रतिष्ठा कर लें या किसी भी पंडित से करवा लें ! इसे रात १० बजे शुरू करें !
तो सबसे पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर अपने साधना कक्ष में आयें और कक्ष को अच्छी तरह सजा लें और कोई खुशबू इत्तर आदि का छिडकाव कर दें और ताजे फूल फल आदि अपने पास रख लें ! फिर गुरू पूजन और गणेश पूजन करें और सद्गुरु जी से साधना के लिए आज्ञा लें ! फिर किसी भोजपत्र पर अष्टगंध से यन्त्र का निर्माण करें और सद्गुरु जी के चरणों में अर्पित कर दें और दिल से प्रार्थना करते हुए यह भावना करें कि सद्गुरु जी के चरणों के स्पर्श से यन्त्र में प्राण उर्जा आ गयी है और दिल से प्रार्थना भी करें कि हे सदगुरुदेव यह यन्त्र आपकी छाया पाकर प्राण प्रतिष्ठित हो और उसके बाद आप यन्त्र को बाजोट पर पीला या हल्का क्रीम या हल्का गुलाबी रंग का वस्त्र जो भी मिल जाये , बिछा कर स्थापित कर दें और आप सफ़ेद या पीले आसन पर उत्तराभिमुख होकर बैठें ! यह साधना आप किसी भी पूर्णिमा को या शुक्लपक्ष के शुक्रवार को करें ! अप्सरा यन्त्र का पूजन गुलाब, कुमकुम, धूप, दीप, फल आदि से करें ! घी का दीपक अच्छा रहता है !
आपको ५१ माला मंत्र जाप करना है और साधना समाप्ति पर वहीँ विश्राम करें और शेष समय अप्सरा के चिंतन में लगा दें ! सुबह उठकर स्नान करें और साधना सामग्री को यन्त्र सहित किसी नदी आदि में विसर्जित कर दें ! ध्यान रहे माला को विसर्जित नहीं करना है ! और अगले शुक्रवार तक एक माला रोज जाप करते रहें ! आप चाहें तो ११ दिन जाप कर सकते हैं ! साधना काल में होने वाले अनुभव को अपने तक ही रखें जब तक अप्सरा आपको वचन ना दे दे !