तीसरा नेत्र
आज से नया विषय शुरू कर रहे हैं, जो तीसरे नेत्र पर आधारित है | तीसरा नेत्र क्या है ? इसे जगाने की तकनीक क्या है ? इसके क्या लाभ हैं ? और इसके अवरोधों को कैसे हटाना है? अभ्यास क्या करना है? आदि विषय पर चर्चा करेंगे | आशा है कि आपकी जानकारी में यह जरूर इजाफा करेगा |
जय श्रीधाम
नागेंद्रानंद
तीसरे नेत्र का रहस्यमयी विज्ञान –1 — आध्यात्मिक विज्ञान
सबसे पहले दो तत्वों को समझें, एक कि तीसरे नेत्र की उर्जा वास्तव में वोही है जो हमारे दोनों आँखों में प्रवाहित होती है | ठीक वहीँ यह दुसरे केन्द्र की और बहना शुरू कर देती है | तृतीय नेत्र पहले से वहीँ है, लेकिन काम नहीं कर रहा है और यह उस समय तक नहीं दिख पाता जब तक हमारी दोनों आँखें काम करना बंद नहीं कर देती | हाँ ये बात भी अलग है, जब दोनों नेत्रों में एक नाडी के मध्य से सम्बन्ध बन जाता है तो व्यक्ति खुली आँखों से भी देखना शुरू कर देता है | उसी उर्जा को अपने अंतर में प्रवाहित करना है | जब उर्जा दोनों नेत्रों से नहीं बह रही होती तब यह तीसरे नेत्र में प्रवाहित हो जाती है | जब यह तीसरे नेत्र से बहती है तो दोनों नेत्रों से दिखाई नहीं देता | यह वहाँ पर होगी लेकिन आप उसको देखने के योग्य नहीं होंगे | जो उर्जा उनके मध्य से देखती है वह अनुपस्थित होगी | वह दुसरे केन्द्र से प्रवाहित होगी | यह केन्द्र इन दोनों नेत्रों के मध्य में है | वह वहाँ पर है और पूरा है वह किसी भी क्षण कार्य कर सकता है | लेकिन उसे कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता है और ऊर्जा को उस तक लेकर जाना ही पड़ेगा |
दूसरा तथ्य — जब आप दोनों आंखो के मध्य से देख रहे हैं, आप अपने भौतिक शरीर के मध्य से देख रहे हैं | तृतीय नेत्र वास्तव में भौतिक शरीर का अंग नहीं है ! यह दूसरे शरीर का अंग है जो कि छिपा हुआ है और वह है सूक्ष्म शरीर | भौतिक शरीर में उस के अनुरूप एक बिन्दु है पर यह उसका अंग नहीं है | इसलिए शरीर शाश्त्र विश्वास नहीं करता कि इस शरीर में तीसरी आँख जैसी या उस जैसी कोई चीज है | क्योंकि आपकी खोपड़ी का विश्लेषण किया जा सकता है | उसे एक्सरे द्वारा देखा जा सकता है | यहाँ कोई बिन्दु नहीं मिलता, कोई भी ऐसी भौतिक इकाई नहीं मिलती जिसे तृतीय नेत्र कहा जा सके, क्योंकि तृतीय नेत्र सूक्ष्म शरीर का अंग है, तृतीय नेत्र देखने की तकनीक से किस तरह संबंधित है यह बहुत गहराई का विषय है | वास्तव में यह तकनीक तीसरे नेत्र को खोलने की है | यदि आप की दोनों रुक जायें , पत्थर की तरह स्थिर हो जायें तो उनसे बहने वाली ऊर्जा रुक जाती है | उर्जा बहती है इसलिए वह गति करती है | यदि आप उन्हे बंद कर दें अर्थात रोक दें तो उनमें ऊर्जा बहना बंद हो जाती है | इस प्रकार ऊर्जा के कारण ही वह अपना कार्य करती है | उनकी गति उनका इधर उधर घूमना ऊर्जा के कारण ही है | यदि यह ऊर्जा गति नहीं करेगी तो आँखें मृतक की तरह हो जाएँगी पथरीली ,मृत |
अपनी आँखें बिना इधर उधर घुमाए एक बिन्दु पर स्थिर कर देने से यह ऊर्जा भी स्थिर हो जाती है | अचानक यह ऊर्जा जो आंखो में गति कर रही थी उससे गति नहीं होगी, जबकि ऊर्जा को गति करनी ही होती है | ऊर्जा एक स्थान पर कभी रुकी हुई नहीं रह सकती | और जब अचानक दरवाजा बंद होने से ऊर्जा रुक जाती है तो अपने लिए दूसरा सबसे पास वाला नया पथ पाने की कोशिश करती है | तब वह तीसरे नेत्र से गति करती है |
तीसरे नेत्र से होने वाली यह गति आपको दुसरे जगत में रूपांतरित कर देती है और आप ऐसी चीजें देखना शुरू कर देते हैं जिन्हें आपने कभी नहीं देखा होता | आप ऐसी चीजें अनुभव करने लगते हो जो आपने कभी अनुभव नहीं की होती | आप ऐसी सुगंधियां सूंघने लग जाते हो जो आपने पहले कभी नहीं सूंघी होती | एक नया जगत एक सूक्ष्म जगत कार्य करना शुरू कर देता है | जोकि पहले से ही वहाँ है | आँख है पर खुली हुई नहीं है, बंद है | एक वार जब आप यह आयाम करना शुरू कर देते हैं तो अनेकों चीजें आपके सामने स्पष्ट हो जाती हैं | उदाहरण के लिए जब एक आदमी मर रहा होता है अगर आपका तीसरा नेत्र काम कर रहा है तो आप तत्काल उस तथ्य की और जागरूक हो जायेंगे कि यह मृत्यु को प्राप्त करने जा रहा है, और जब शिशु जन्म लेता है तो वो लोग जिन्हें तीसरी आँख से देखने का अभ्यास होता है, वह तत्काल देख लेते हैं | यहाँ तक कि शिशु की मृत्यु तक का समय भी देख लेते हैं | लेकिन यह तब होता है जब यह बहुत सूक्ष्म होती है | जो कार्य 6 माह बाद होने वाला है तो कोई भी जिसकी तीसरी आँख काम करती है वो 6 माह पहले देख लेती है | जो होने वाला है उसे महसूस किया जा सकता है, लेकिन इन बाहरी आंखो से नहीं……….
क्रमशः |