गुरु के लिए शिष्य का लगाया हुआ तिलक चार्ट का कार्य करता है जैसे एक हस्पताल में डॉ. चार्ट देख कर जिसमेंमरीज की सारी जानकारी लिखी होती है, जैसे बुखार ,ब्लड प्रेशर आदि वो चार्टदेख कर ही दवाई लिख देता है | इसी तरह तिलक देख कर ही गुरु सब जान जाते हैं कि शिष्य को किस प्रकार की मदद चाहिए | किस चीज को बदलने की जरूरत है | तिलक का यह महत्त्व था | ध्यान मेजिन बदलावों को लाने कीआवश्यकता है उनके बारे में निर्णय लेना | इस प्रकार तिलक शिष्य की दशा बदलने केलिए महान प्रयोग था |
तीसरेनेत्र का दूसरा पक्ष है उस व्यक्ति की इच्छा शक्ति का केन्द्र होना |योगमें इस केंद्र को आज्ञा चक्र कहा है इस का यह नाम इस लिए है, क्योंकि हमारेशरीर में जो कुछ अनुशासन है वो इसी केंद्र से शासित होता है | हमारे शरीरमें समस्वरता (harmony)और व्यवस्था है वो इसी बिन्दु से उठती है | तीसराकेन्द्र इच्छा शक्ति का केन्द्र है | अब इसके कार्यों को समझते हैं |
जिनलोगो का इस जीवन में आज्ञा चक्र सक्रिय नहीं होता वो हजारो तरीकों सेगुलाम रहते हैं | इस केन्द्र के बिना स्वतन्त्रता नहीं है | हम राजनैतिक औरआर्थिक स्वतन्त्रता के बारे में जानते हैंपरंतु यह सच नहीं है |जिसव्यक्ति में इच्छा शक्ति नहीं है, जिस का आज्ञा चक्र सक्रिय नहीं हुआ वह एकन एक रूप में सदैव गुलाम बना रहेगा | वह एक तरह की गुलामी से स्वतंत्र होभी जाए लेकिन फिर दूसरी गुलामी में फंस जाएगा क्योंकि वह अपनी इच्छा शक्तिका कोई केन्द्रनहीं रखता जो उसे किसी चीज का स्वामी बना दे | जिस मेंइच्छा शक्ति नाम की कोई चीज नहीं होती उसमे अपने मन को आदेश देने की शक्तिनहीं होती | उसकी शरीर और इन्द्रियाँ उसको आदेश देते हैं | यदि उसका पेटकहता है कि वो भूखा है तो वो भूखा है | यदि उसका शरीर कहता है वो रोगी हैतो वो बीमार हो जाता है | यदि उसका शरीर कहता है उसे काम की आवश्यकता है तोउसमें सेक्स की इच्छा उठने लगती है यदि उसका शरीर कहता है वह वृद्ध हो गयाहै तो वह वृद्ध हो जाता है | शरीर आज्ञा देता है वह उसका पालन करता है |
लेकिन जैसे जैसे आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाता है शरीर आज्ञा देना बंद कर देता है और उसकी वजाए आज्ञा मानना शुरू कर देता है | सारी व्यवस्था बदल जाती है | जब शरीर उसके अधीन हो जाता है तो वह अपनी नबज़ खून और दिल की धड़कन तक को कंट्रोल करसकता है | ऐसा व्यक्ति अपने शरीर मन और इंद्रियो का स्वामी हो जाता है | लेकिन बिना आज्ञा चक्र के सक्रिय के ऐसा नहीं होता | आप जितना आज्ञा चक्रको स्मरण रखते हैं उतने ही अधिक अपने के स्वामी हो जाते हैं |
योग में इस केन्द्र को सक्रियकरने के अनेक प्रयोग दिये हैं | लेकिन जो व्यक्ति इस को बार बार याद रखता है तो परिणाम भी महान होते हैं | अगर इस स्थान पर तिलक लगा दिया जाए तो आपका ध्यान बार बार वहाँ जाएगा| जैसे ही इस स्थान पर तिलक लगाया जाता है वह स्थान शेष शरीर से अलग बन जाता है | यह बिन्दु शरीर का सब से अधिक संवेदनशील स्थान है इसलिए तिलक लगते ही आपको यह स्थान याद ही रखना पड़ेगा | इस स्थान पे तिलक लगाने की सैकड़ो विधियां हैं, सैकड़ों प्रयोग करने के बाद चन्दन को चुना गया | चंदन के लेप और इस स्थान के बीच एक सबंध है | जब चंदन का लेप इस स्थान पर लगाया जाता है तो इस की संवेदनशीलता बढ़ जाती है| ऐसा नहीं है कि इस पर कोई भी चीज लगा दी जाए | कई बार दूसरी चीजे इस की संवेदनशीलता को हानि भी पहुंचा सकती हैं | उदाहरण के लिए इस स्थान पर औरतें ज्यादाकर बाजार से मिलने वाली बिंदी आदि लगाती हैं |जबकी बाजार से मिलने वाले टीके बिंदी का कोई वैज्ञानिकआधार नहीं होता |उनका योग से कोई संबंध नहीं होता | इसलिए यह बिंदी आदि इस स्थान की संवेदनशीलता को हानि पहुंचाते हैं |
प्रश्नयह है कि कोई भी चीज इस केन्द्र की संवेदनशीलता को घटाती या बढ़ाती है | अगर बढ़ाती है तो ठीक है, अगर घटाती है तो हानिकारक है | इस विश्व में एकछोटी सी चीज भी अंतर डाल सकती है | हर चीज का अपना असर होता है इस बात कोध्यान में रखते हुये कुछ वस्तुएं इस विषय में उपयोगी पायी गई हैं | अगरआज्ञा चक्र को सक्रिय कर दिया जाए और संवेदनशील बना दिया जाए तो आपकीभव्यता और सम्पूर्णता में विकास होगा| आप अपनी चेतना में और अधिकसंपूर्णता अनुभव करना शुरू कर देंगे |आपकी चेतनता आपके दंद, बिखराव ,विभाजन का जब अंत हो जाएगा तथा आप पूर्ण हो जाओगे |
टीकाऔर तिलक के उपयोग में साधारण सा अंतर है | टीका विशेष रूप में महिलाओं केलिए था | महिलाओं का आज्ञा चक्र बहुत कमजोर होता है क्योंकि इनका व्यक्तितवसमर्पण के लिए रचा गया | उनका सोंदर्य समर्पण मे है ! अगर उनका आज्ञा चक्रशक्ति शाली हो जाता तो समर्पण करना कठिन हो जाएगा | इस लिए स्त्री हमेशाकिसी न किसी का सहारा चाहती है | वो चाहती है कोई हो जो उसका नेतृत्व करसके और आज्ञा पालन करने की इच्छा उसे प्रसन्नता प्रदान करती है | संसार मेंभारत ही एक मात्र देश है जिसमें महिलाओं के आज्ञा चक्र को सक्रिय करने कीकोशिश की गई | ऐसा इसलिए किया गया कि जब तक इनके आज्ञा चक्र को सक्रिय नहींकिया जाएगा यह आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकती | क्योंकि ध्यान की साधनामें इच्छा शक्ति के बिना कोई प्रगति नहीं कर सकता | इसलिए उसे शक्ति शालीऔर स्थाई बनाना जरूरी था | अगर उसे परूष की तरह साधारण रीति से शक्ति बनायागया तो उसके स्त्रीत्व में कमी आ जाएगी और पुरुष जैसे गुणो का विकास होनेलगेगा | अतः टीका अभिन्न रूप से स्त्री के पति से सम्बंधित था ! यह सांगता जरूरी थी | अगर उसे स्वतन्त्रता पूर्वक लगा दिया जाता तो वहउसकी स्वतन्त्रता को और बढ़ाता | उसको आत्मनिर्भर बनाता और वह जितनी भीस्वतंत्र हुई उसकी कोमलता, सोंदर्य नगन्ता नष्ट हुई | इसलिए यह जरूरी समझागया कि उसे सीधे शक्ति शाली बना देने से उसके स्त्रीत्व की हानि होगी | उसके माँ बनने में समस्या होगी | उसे समर्पण करने में कठनाई होगी इसलिएउसकी इच्छा शक्ति को उसके पति के साथ जोड़ने की एक कोशिश की गई | यह दोप्रकार से सहायक था उसके स्त्रीत्व पर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा फिर भीउसका इच्छा शक्ति का केन्द्र सक्रिय हो जाएगा इसलिए महिलाओं में टीका महत्वपूर्ण स्थान रखता है |