समर्पण -9- बाबा रामनाथ जी के शमशान कौतुक

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आज भंडारा चले हुए कई दिन हो गये थे अचानक बाबा जी के मन में क्या आया, उन्होंने कहा 2 कड़ाहे चावल बनाओ | अरे हुस्ने, इन चावलों को कहीं लेकर जायेंगे, वो भी हमारे काम आते हैं, उन्हें भी खिलाना चाहिए कुछ |  उस वक़्त तो हम समझे नहीं लेकिन रात्रि 10 बजे के करीब बाबा राम नाथ जी ने 8-10 लोगों को चावल उठाकर चलने के लिए कहा और मैं और दस लोग और चावल उठाकर चल पड़े | अरे ये क्या, ये तो शमशान की तरफ जा रहा है, क्या करेगा इन चावलों का? यह सोचते हुए हम सभी उनके पीछे पीछे चल रहे थे | शमशान पहुँच कर बाबा जी ने सभी को एक तरफ कर दिया और कहा कोई डरे ना, मैं हूँ | सभी सोच रहे थे कि इन्हें क्या हुआ ये शमशान में लंगर किसे खिलाएंगे और बाबा जी ने सभी के चारों तरफ अपने कमंडल से जल लेकर छिड़का और स्वयं  मन्त्र पढ़ने लगे |

ॐ नमो भूतनाथ साम्सद भवन ……………………………………….हुं फट !!

और देखते ही देखते शमशान से उठ कर लोग आने लगे और शायद वो भूत थे या अतृप्त आत्माएं  सभी जाग उठे और देखते ही देखते पूरा शमशान जाग उठा | बाबा जी ने कहा, लड़ना नहीं, सभी एक लाइन में आओ और वो एक आज्ञाकारी बालक की तरह सभी लाइन में लग गये और बाबा जी ने चावल बांटने को कहा | सभी विस्मित निगाहों से देखते हुए उन भूतों को चावल बांटने लगे | बड़ा  रोमांचक दृश्य था, मन आनंद से भर गया था और वो सभी हमे अपने जैसे ही लग रहे थे | 2 घंटे के करीब हम शमशान में रहे | ऐसी कठिन क्रिया बाबा जी सहज ही कर लेते थे और रात्रि 1 बजे के करीब हम सभी वापिस आ गये | बाबाजी के चेहरे पर संतुष्टि दिख रही थी और ऐसे हमे शमशान के एक और रहस्य का पता चला कि इनका जीवन भी हमारी तरह ही है | समय पाकर बाबा जी से यह क्रिया सिखने का मौका मिला | उन्होंने मुझे सहज ही या क्रिया संपन्न करा दी |

दुसरे दिन कुछ लोग बाबा बालक नाथ जी के यहाँ जा रहे थे और भंडारे में रुक गये और बाबा जी को नमस्कार करके कहने लगे, आओ बाबा जी, आपको दर्शन करा लायें, हमारे पास गाड़ी है और उनको देख कर बाबा जी कहने लगे, मैं तुम्हारी गाड़ी से पहले वहां जा सकता हूँ | वो कहने लगे ऐसा कैसे हो सकता है तो बाबा जी ने कहा, शर्त लगा लो, तो बात 5000 की हो गई | बाबा जी ने पाँच हजार निकाल कर विलायती राम जो उनका शिष्य था पकड़ा दिए और कहा तुम भी पैसे इसे पकड़ा दो, जो जीत गया वो ले जायेगा | वो मान गये | बाबा जी तो लीला कर रहे थे क्योंकि साधू अपने मन के मालिक होते हैं और वो चल पड़े और सीधे माथा टेकने गुफा की और चल पड़े | बाबा बालक नाथ जी का स्थान शाहतलाई जिला हमीरपुर हिमाचल प्रदेश में है जो वहां से 120 km के करीब था और जैसे ही वो गुफा के पास पहुंचे बाबा जी सामने खड़े थे और उन्हें देख कर बोले, मैं तो कभी का तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ कहाँ रह गये थे तुम | अरे ये इतनी जल्दी यहाँ कैसे पहुंचे? हम तो कहीं  रुके भी नहीं और बाबा जी ने उनसे प्रशाद लेकर खुद चढ़ा दिया और कहा, अभी मुझे कुछ खिलाओ  और उन्होंने पास की दुकान से दूध और बर्फी ली और बाबा जी ने कहा कि अभी मुझे लिखकर दो कि रामनाथ हमें मिल गया है और उनसे लिखा कर कोई निशानी देने को कहा | उन्होंने एक कमंडल  लेकर बाबा जी को दिया और बाबा जी ने कहा, अभी चलो कहाँ चलना है | 3 दिन वो वहां रहे और बाबा जी उनके सामने आखिर जब आने लगे तो बाबा जी ने कहा तुम अपनी गाड़ी से जाओ, मैं तुम्हे वहीँ मिलूँगा और वो जब आये तो आते ही पूछने लगे कि बाबा जी कल कहाँ थे, परसों कहाँ थे तो लोगों ने कहा ये तो यहीं थे, कही नहीं गये तो बाबा जी ने उन्हें बुलाया और कहा, क्यों मिला था ना तुम्हे | ये पर्ची पढ़ो जो तुमने लिख कर दी थी और ये तुम्हारा दिया कमंडल | वो देखते ही चरणों में झुक गये और बाबा जी शर्त जीत गये | ऐसे ही उनके अनेक कौतुक देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |  वो बाल सुलभ ही सब बता देते थे | साढ़े तीन साल भंडारा चला और जब वो तृप्त हो गये मुझे साढ़े तीन लाख जो भंडारे से बच गये थे देकर कहने लगे, इसे घर ले जा और मैं उनके कहने पर घर ले आया और घर वाली को देकर कहने लगा ले संभाल के रख ले | वो पूछने लगी क्या है ये और जैसे ही उसने पैसे देखे कहा, कहाँ से लाये हो तो मैंने सब बता दिया | वो कहने लगी यह पैसे अभी यहाँ  से ले जा कर बाबा को वापिस कर के आओ नहीं तो घर मत आना | मुझे किसी फकीर की कमाई नहीं चाहिए | जैसी गुरुदेव रुखी सुखी देते हैं मैं संतुष्ट हूँ और ये पैसा भंडारे में ही लगा दो और मैं उसकी बात सुन कर हैरानी से उसकी तरफ देखता रहा और वो मुझ पर बरस रही थी कि मैंने ऐसी गलती कैसे कर ली | आखिर पैसा लेकर बाबा जी के पास पहुंचा और कहा बाबा जी यह मुझे नहीं चाहिए, मुझे तो आपकी बहू घर में भी घुसने नहीं देती | कहती है पहले पैसा वापिस कर के आओ | यह सुन कर बाबा जी प्रसन्नता से मुस्कुरा दिए और पैसे लेकर वापिस रख लिए और मैंने गुरु जी का धन्यवाद किया और घर को वापिस आ गया | (क्रमशः)