समर्पण 8 —- बाबा राम नाथ जी एक सिद्ध पुरष

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बाबा राम नाथ जी नाथ सम्प्रदाय के महान साधक थे | उनका कर्म भी महान था | 1947 के ग़दर के वक़्त लोगों की सहायता के लिए अनाज एक बैल गाड़ी में भर के खड़े हो  जाते | अगर हिन्दुओं का काफिला आता तो और अगर मुसलमानों का काफिला आता तो भी सभी को अनाज वितरित कर देते और कभी धर्म या मजहब का फर्क ना करते | इस तरह चलते हुए मुसाफिरों की सहायता करते | जो लोग उजड़ के पाकिस्तान और हिंद्स्तान की सरहद से बंट गये सभी को सहायता देते | काफी समय बीत जाने के बाद उन्होंने ढलाई का एक कारखाना मंदी गोबिंदगढ़ में लगा लिया और अपने साधू स्वभाव के कारण सभी लेबर के लिए लंगर लगा देते | इस पर घर वालों ने एतराज किया और वो सभी कुछ छोड़ कर नाथ बन गये | जब मैंने पूछा तो हुस्न चन्द जी ने बताया कि कैसे उनसे मुलाकात हुई |

मैं नैना देवी दर्शन हेतु जा रहा था तो आगे एक टोबा आता है जिसे लोग कोलाँ का तलब भी कहते हैं वहां कुछ लोग झगड़ रहे थे | मैं भी रुक गया, देखा कुछ दुकानदार एक साधू से पैसे मांग रहे हैं और वो कह रहा है जब हैं नहीं तो कहाँ से दूं | मैंने कौन सा खुद खा लिया है, भंडारा ही किया है, तुम लोगों का भी पुन्य लग जायेगा | हम नहीं करते ऐसे पुन्य, दुकानदार कह रहे थे | 6 फीट कद ऊँचा लम्बा कानों में बड़ी बड़ी मुन्दर पहने हुए और भगवा चोला पहने हुए | मैंने जानने के लिए उनसे पूछा, क्या हुआ, तो उन्होंने कहा इसने भंडारे के लिये सामान लिया था, अब पैसे नहीं दे रहा | 35000 रूपये हैं, कम होते तो छोड़ भी देते | मैंने बाबा से पूछा, बाबा जब पैसे नहीं थे तो ना करते भंडारा तो वो मुझे एक तरफ ले गया और कहा मुझे एक देवी यक्षिणी भंडारे के लिए पैसे देती थी | उसने कहा था कि मैं सिर्फ गृहस्थ लोगों के लिए खर्च कर सकता हूँ क्योंकि ये यक्षिणी सिर्फ गृहस्थ लोगों की सहायता करती है | मैं साधू हूँ इसलिए अपने लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता मगर कुछ दिन पहले थोड़ा धन मुझसे खर्च हो गया | अगर मैं गृहस्थ होता तो कोई बात नहीं थी | अब बात दूसरी है | उसने धन देने से मना कर दिया और इनका कर्ज हो गया | अब मैंने खुद तो खाया नहीं इन्हे भी पुन्य कमाना चाहिए | बाबा ऐसे नहीं होता | मैंने दुकानदारो को समझा कर वापिस भेज दिया और कहा आपका पैसा मिल जायेगा | उन्होंने कहा अगर इसने ना दिया तो आपसे लेंगे | मैंने उन्हें अपना पता दिया और कहा जब तक आपका पैसा नहीं मिलता मैं यहीं हूँ तो वो चले गये |

मैंने बाबा जी से कहा, एक कर्म है मेरे पास जो आपकी मदद कर सकता है तो मैंने उन्हें नूरी तारा साधना बताई और कहा इस मन्त्र को कीकर के पेड़ के नीचे बैठ कर तिल से हवन करते हुए अनुष्ठान करना है और उन्होंने एक आदमी भेज कर उसी वक़्त तिल मगाए और अनुष्ठान रात्रि में शुरू कर दिया | मुझे वहीँ रख लिया |

रात्रि का दूसरा पहर शुरू हो गया था और बाबा जी मन्त्र जपते आहुति डालते जा रहे थे |

ॐ नूरी तारा …………………………………………………………………………..नमो …………. |

धीरे धीरे रात्रि बीत गई और सुबह स्नान के बाद भोजन किया | दूसरी रात्रि भी मन्त्र जप चलता रहा | आज तीसरा दिन था, रात्रि के तीन बज गये थे और बाबा जी बराबर मन्त्र जपते आहुति डालते जा रहे थे | 10 मिनट बाद ही जोर की आवाज आई और एक ज्योति कीकर के पेड़ से बाहर आ गई और देखते ही जमीन पर लगते ही एक सुंदर बालक रूप में प्रकट हो गई | सिर पर सुनहरी जटाएं, छोटा सा मुख, छोटे छोटे से हाथ देखने में फरिश्ता लग रहा था और कहने लगा बाबा क्या चाहिए, क्यों पुकार रहे हो मुझे तो बाबा ने कहा यह मुसीबत आन पड़ी है मुझे 35000 रूपये चाहिए और उस देवते ने बाबा की आँखों में देखा और हवा में हाथ किया और दुसरे ही क्षण उसके हाथ में रूपये आ गये और वो बाबा को  देकर ज्योति से रूपांतरित हो वापिस कीकर में समा गया | दुसरे दिन मैं नैना देवी चला गया | आते वक़्त बाबा से मिला और अपने घर आ गया | दुसरे दिन बाबा सामान उठा कर एक ट्रक में लाद कर मेरे घर आ गये | मैंने उन्हें गाँव के बाहर ही एक मोड़ पर सघने दरख्तों के बीच अपने चाचा जी की जगह में ठहरा दिया | शाम को वो मेरे पास आ गये और कहा, जब तुम ये काम कर सकते हो तो इस यक्षिणी को भी ठीक कर सकते हो | मेरे पास यक्षिणी निदान (एक 500 वर्ष  पुराना ग्रन्थ था जोकि एक नाथ की बेवकूफी की वजह से  जल गया था, जो हस्तलिखित रूप में हमारे पास था जिसमें यक्षिनियो की प्रमाणिक साधनाएं थी, इसके बारे में बाद में जिक्र करेंगे) की जानकारी थी और गुरुदेव जी को याद कर मैंने उसका हवन किया और वो ठीक हो गई | उसके बाद तो बाबा जी ने मुझे अपने पास ही रख लिया और अपनी असीम कृपा से ज्ञान प्रदान किया | एक बार मुझसे कहने लगे, आज भंडारे का मन हो रहा है मैंने कहा बाबा पैसे तो हैं नहीं, भंडारा कहाँ से करेंगे | उस वक़्त बाबा जी को रहते हुए काफी समय बीत गया था | ठहरो मैं कुछ करता हूँ इतना कह कर  वो अपने आसन पर बैठ गये और दस मिनट बाद कहा, आकर देखो तो 30000 शायद आ गया होगा | जब उनका आसन उठाया तो नीचे नोट ही नोट बिछे थे | जब गिने तो 850000 निकले | उन्होंने कहा आज जितना भी मंडी में अनाज आया है सभी खरीद लाओ और मैंने मंडी में जाकर अनाज खरीद लिया और उसे ट्रकों में भर कर आश्रम वापिस आ गया | 1250 बोरी हुई और उसे लाकर एक गोदाम में रख दिया | राम नाथ को एक ही शौक था भंडारे का और इतना बड़ा भंडारा होने जा रहा था | साथ की जमीन वाले बोलने लगे तो उन्होंने वो जमीन मेरे नाम से खरीद ली और वहां मकान बनाकर भंडारा शुरू कर दिया जो 3 साल तक चला और वहीँ रहते सेवा करते हुए मैं उनसे शिक्षा ले रहा था | वो कई विधाओं के जानकार थे | शमशान साधना तो उनके लिए खेल समान थी, जिसका जिक्र अगले लेख में करूँगा (क्रमशः)