विद्या यक्षिणी – वेद मात्री साधना || Vedmatri Yakshini Sadhna ||

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यक्षिणी साधना के अंतर्गत यह साधना विद्या प्राप्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण है | इससे साधक को कई गुप्त विद्याओं का ज्ञान यक्षिणी प्रदान कर देती है | जिससे वो कई विद्याओं में पारंगत हो जाता है और इसके साथ ही उसकी दरिद्रता का नाश भी हो जाता है | आलस्य दूर होकर वो एक अच्छे साधक की श्रेणी में आ जाता है | उसके लिए साधना मार्ग सुलभ हो जाता है | यक्षिणी कई साधनाओं में सहायता प्रदान स्वयं कर देती है | इसे किसी भी पूर्णिमा या पंचमी तिथि से शुरू करें | इसकी साधना सरल है |

विधि 

शुद्ध सफ़ेद वस्त्र पहन कर आसन पर पूर्व मुख बैठें | गुरु पूजन और श्री गणेश पूजन कर गुरु जी से साधना में सफलता की प्रार्थना करें और साधना करने की आज्ञा प्राप्त करें |

फिर दिशा शोधन के लिए जल लेकर “ॐ श्रीं ॐ” पढ़ कर चारों दिशाओं में छिड़क दें और पूजा शुरू करें | एक तेल का दिया जला लें और एक वेदी सी बना लें आटे, हल्दी और कुंकुम को मिलाकर | उसमें एक छोटी  सी मिटटी की मूर्ति बनाकर उसे हल्दी, कुंकुम और चन्दन से रंग दें | मूर्ति औरत की बनायें | उसी को उस वेदी में स्थापित करें और एक जल का कलश स्थापित करें | उस पर नारियल रखें | वेदी में पाँच लड्डू, कुंकुम, सफ़ेद फूल, लोंग, इलायची, पान, सुपारी, एक पीपल के पत्ते पर रख दें और उस मूर्ति की पूजा करें | तेल का दिया जला दें और सुगंध के लिए अगरबत्ती लगा दें | पूजन के पश्चात जप शुरू करें | इस साधना में ब्रह्मचर्य का पालन करें और साधना समाप्ति पर 25 माला मन्त्र से हवन करें पाँच मेवा और घी मिलाकर तो वेद मात्री यक्षिणी प्रसन्न होकर वरदान देती है और उसे कई प्रकारकी विद्याओं में पारंगत बना देती है | यह मन्त्र रिद्धी सिद्धि देने वाला है | प्राप्त किसी भी विद्या का दुरूपयोग ना करें और ध्यान में पवित्रता रखें |

साधना काल

इसका जाप रात्रि 10 बजे से शुरू करें |

दिन सोमवार या पंचमी तिथि या पूर्णिमा को शुरू करें |

दिशा उत्तर या पूर्व को मुख कर बैठें |

भोग के लिए लडू पास रख सकते हैं |

वस्त्र सफ़ेद आसन कोई भी सफ़ेद रंग का ले सकते हैं |

यह वेद ज्ञान प्रदान करने वाली साधना है, इसे पवित्रता से करें |

 

मन्त्र

|| ॐ ह्रीं वेद मात्री स्वाहा ||

|| Om Hreem Ved Matri Swaha || 

 

इस मन्त्र का 21 माला जप करना है एक महीने तक | 21 दिन भी किया जा सकता है | यह साधना सीधे साधक को गुरु से जोड़ देती है और गुरु माध्यम से उसे विद्या प्राप्त होने लगती है | ऐसा बहुत साधकों का अनुभव है |