तीसरे नेत्र का रहस्यमयी विज्ञान – आध्यात्मिक विज्ञान –6 |The Mystery of Third Eye.-6

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तीसरे नेत्र को अधकच्ची अवस्था में जगाना हानिकारक ही होता है | ऐसे लोगों का निरिक्षण करने पर पाया गया है कि जिन लोगों की तीसरी आँख तो काम कर रही होती है मगर दूसरे चक्र यदि स्वस्थ नहीं हैं तो स्पष्ट पता चल जाता है कि इसे योग्य मार्गदर्शन नहीं मिला | यह हानि शिथिल होने से नहीं, तीसरे नेत्र की क्रिया करने से होती है | शक्ति चक्र पर कठोर परिश्रम करना प्राय उसे पहले और पांचवें चक्र पर दबाव डालना पड़ता है | व्यक्ति ने देखने और जानने के तरीकों को विकसित कर लिया मगर उसमें अहंकार एक बड़ा और पेचीदा बन जाता है |

भैरव विज्ञान कहता है, “अपने सिर के बाहरी सात मार्गों को अपने हाथों की उँगलियों से बंद कर दो और तुम्हारी आँखों के मध्य स्थान में सभी का समावेश हो जाता है” | यह तकनीक सबसे प्रचीन है और सरल भी | सिर के सारे बाहरी भागों– आँख,  कान, नाक, मुह को बंद कर दो | जब सारे बाहरी मार्ग बंद हो जाते हैं तो आपकी चेतना जो बाहर की और गति कर रही होती है, अचानक रुक जाती है | वह गति नहीं कर सकती | जब वह गति नहीं कर सकती तो अंदर रहती है | सात छेद बंद होने से वो बाहर नहीं जा सकती और उसका अंदर रहना ही आंखो के मध्य भाग में एक स्थान बनाता है | यदि सिर के सात बाहरी मार्ग बंद कर दिये जाते हैं तो आप अंदर ही रहते हैं | आप बाहर गति नहीं कर सकते क्योंकि आप इन मार्गों के द्वारा ही बाहर जाते हैं | आपकी चेतना भी अंदर ही रहती है और इन दोनों साधारण आँखों के मध्य केन्द्रित और एकाग्र हो जाती है | वह दोनों आँखों के मध्य पूरी तरह केन्द्रीभूत हो जाती है | वह स्थान का बिन्दु ही तीसरी आँख के नाम से जाना जाता है | यह स्थान अपने में सब कुछ समा लेने के योग्य बन जाता है | यह सूत्र कहता है कि इस स्थान में ही सब कुछ निहित है | सारा अस्तित्व इसमें सम्मिलित है | अगर आपने इस स्थान का अनुभव कर लिया, आपने सबका अनुभव कर लिया | एक बार  जब आपने अपनी इन आँखों के मध्य स्थित स्थान के आंतरिक  भाग का अनुभव कर लिया तो अपने अस्तित्व को जान  लिया, उसकी पूर्णता को जान लिया क्योंकि इस आंतरिक स्थान में सब कुछ शामिल है | कुछ भी बाहर शेष नहीं रहता | उपनिषद कहते हैं “एक को जान कर सब जान लिया जाता है” | ये दो आँखें सीमित को देख सकती हैं, तीसरी आँख असीम को देखती है | ये दो आँखें भौतिक पदार्थों को देखती हैं | यह तीसरी आँख अभौतिक और आध्यात्मिक को देखती है | इन दो आँखों के मध्य से आप ऊर्जा का कभी अनुभव नहीं कर सकते, ऊर्जा को कभी देख नहीं सकते | आप केवल पदार्थ को देख सकते हैं | लेकिन तीसरी आँख से आप ऊर्जा को उसी रूप में देखते हैं जैसी की वो है |

भैरव विज्ञान कहता है “दोनों भोहों के मध्य ध्यान केन्द्रित करो | अपने मन के विचारों को देखो | शनैः शनैः विचार विलीन हो जायेंगे और प्रकाश की वर्षा होने लगेगी” | यह विधि तीसरे नेत्र को खोलने की है | ध्यान भूमध्य रखो …..अपनी आंखे बंद कर लो फिर अपनी दोनों आंखो को ठीक भूमध्य में केन्द्रित करो | बंद आंखो से ध्यान मध्य में केन्द्रित करो जैसे तुम दोनों  आँखों से देख रहे हो | इस पर पूरा ध्यान दो | यह ध्यान देने की सबसे अधिक सरल विधि है | आप शरीर के अन्य भाग के प्रति इतनी सरलता से ध्यान नहीं दे सकते | यह ग्रंथि ध्यान को भली प्रकार से आकर्षित करती है और सोखती है | जब आप इस पर ध्यान देंगे तो आपकी दोनों आंखे तीसरी आँख से सम्मोहित हो जाएगी, हिप्नोताइज हो जाएगी | वह स्थिर हो जाएगी | वह इधर उधर गति नहीं कर सकेगी | अगर आप शरीर के दूसरे अन्य भाग पर ध्यान देने की कोशिश करते हो तो वह कठिन होगा | तीसरा नेत्र ध्यान को अपनी और आकर्षित करता है | ध्यान को बलपूर्वक अपनी और खींचता है | ध्यान के लिए यह चुम्बकीय है | इसलिए साधना संसार की सभी विधियों में इसका उपयोग किया जाता है | इस पर ध्यान लगाना सबसे सरल होता है क्योंकि केवल आप ही  इस पर ध्यान लगाने का प्रयत्ननहीं करते, वह ग्लैंड भी आपकी मदद करता है | इसमें चुम्बकीय शक्ति है | आपका ध्यान बल पूर्वक खींचा जाता है और वह उसमें लीन हो जाता है |

तंत्र के प्रचीन ग्रंथो में कहा गया है कि ध्यान तृतीय नेत्र के लिए आहार है | वह भूखा है, वह जन्म जन्मान्तरों से भूखा है | यदि आप उस पर ध्यान देंगे तो वह जीवित हो उठेगा, वह संजीव हो जाता है | उसको भोजन दे दिया जाता है और एक बार आपने जान लिया कि ध्यान उसका आहार है | एक बार आपने अनुभव कर लिया कि आपका ध्यान चुम्बकीय रूप में खिंच जाता है, आकर्षित हो जाता है | ग्रंथि (ग्लैण्ड) द्वारा स्वयं आकर्षित कर लिया जाता है तब ध्यान करना कठिन नहीं रहता | व्यक्ति को केवल सही बिन्दु जानना होता है | इसलिए अपनी आंखे बंद कर लीजिये | अपनी दोनों आंखो को मध्य में लाईये और उस बिन्दु का अनुभव करिये | जब आप उस बिन्दु के निकट होते हैं तो अचानक आपकी आंखे स्थिर हो जाती हैं | जब उन्हे इधर उधर हिलाना कठिन लगे तो जान लीजिये कि आपने सही बिन्दु पकड़ लिया है | ध्यान भोहों के बीच में हो और मन विचारों के सामने यदि आपने पहली बार ध्यान स्थिर किया है तो आपको एक विचित्र अनुभव होगा | पहली बार आप अपने विचारों को अपने सामने से गुजरते हुए देखोगे | आप उनके साक्षी होंगे | यह एक फिल्मी पर्दे की तरह होगा | विचार चल रहे हैं और आप उन्हे दर्शक की तरह देख रहे हैं | एक बार अगर ध्यान तीसरे नेत्र के मध्य बिन्दु पर लग गया तो आप उसी वक़्त अपने विचारों के साक्षी बन जाते हैं | यह विधि विज्ञान भैरव तंत्र से उद्दित है |

|| क्रमशः ||

नागेंद्रानंद