तीसरे नेत्र का रहस्यमयी विज्ञान – आध्यात्मिक विज्ञान – 3 |The Mystery of Third Eye – 3

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तीसरी आँख छठा केंद्र  है , सातवां  सर्वोतम है ! छठा आपके अनुभव के सर्वोच्च निकट है ! यह सातवें केंद्र के लिए जमीन तैयार करता है ! सातवें केंद्र में आप रोशनी की एक चमक भर नहीं हो जाते बल्कि स्वयं एक प्रकाश रूप हो जाते हैं  ! यही  कारण है कि जो व्यक्ति सातवें केंद्र पर पहुँच जाता है, हम उसके अनुभव को ज्योतिर्मय कहते हैं, अर्थात ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होना ! उसका पूरा अस्तित्व या होना केवल पवित्र प्रकाश बन जाता है ! जिसको कोई ईधन की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि जिसको ईधन की जरूरत होती है वह अमर नहीं हो सकता !

ईधन नहीं इसलिए उस प्रकाश में अमरतव है ! यह आपके अस्तित्व या होने का अनुभव है !  पूरे ब्रह्मांड के होने का अनुभव है ! यह सारा ब्रह्मांड हमारा शरीर बन जाता है, तब हम अपने को इस छोटे से शरीर में क्यों रखना चाहेंगे ! योगियों में और उच्च कोटी के संतों में इसी अवस्था को तुरीय अवस्था कहा जाता है ! तुरीय अवस्था पर गहराई से फिर कभी चर्चा करेंगे , अभी हम इस अवस्था के नजदीक कैसे जाना है और इस अवस्था को कैसे प्राप्त करना है,  इस पर चर्चा करेंगे  !

तिलक रहस्यम – सिन्दूरी चिन्ह या टीका , जोकि  भारतीय आध्यात्मिक व्यक्तियों के माथे पर लगाया जाता है, इसका आविष्कार पहले उस अज्ञात जगत के एक प्रतीक और संकेत के रूप में किया गया था ! इसे जहां कहीं भी नहीं लगाया जा सकता और केवल वो व्यक्ति जो अपने हाथ को अपने माथे पर रख कर उस बिन्दु को बता सकता है जहां इसे लगाना है, केवल वोही इसका उपयोग कर सकता है ! तिलक को कहीं भी लगा देने का कोई उपयोग नहीं है ! क्योंकि यह बिन्दु प्रत्येक व्यक्ति में एक जगह नहीं होता ! जिसने पूर्व जन्म में ध्यान आदि कर समाधि की अवस्था का अनुभव किया है, उसकी तीसरी आँख माथे पर नीचे होती है, बाकी सामान्य व्यक्तियों के दोनों भोहों से उपर बीच में हो सकती है ! जिस ने कभी ध्यान आदि नहीं किया हो उसकी तीसरी आँख माथे के ऊपरी भाग में होती है ! इस बिन्दु से यह पता लगाया जा सकता है कि पिछले जीवन में आपकी ध्यान की क्या स्थिति थी ! इस से यह ज्ञात हो जाएगा कि आपने पूर्व जन्म में कभी समाधि की स्थिति प्राप्त की या नहीं ! यदि यह प्रायः  लगती हो तो यह बिन्दु नीचे आ जाएगा ! आपकी आंखो के ठीक समान स्तर पर आ गया है तो आप छोटी से छोटी घटना से भी समाधि जैसी स्थिति पर चले जायेंगे ! यह घटना चाहे इतनी सामान्य हो, उसका होना या न होना चाहे कुछ भी न हो ! इस लिए अनेक बार कोई व्यक्ति जब बिना किसी कारण के समाधि में चला जाता है तो हम आश्चर्य में पढ़ जाते हैं ! जब पिसे हुये चन्दन का तिलक इस विशेष स्थान पर लगाया जाता है तो यह कई बातों का इशारा करता है !

प्रथम – यदि आपको गुरु जी ने एक विशेष स्थान पर तिलक लगाने को कहा है, आप वहाँ कुछ अनुभव करने लगते हैं ! आपने कभी इस बात पर विचार या ध्यान नहीं दिया होगा,  जब आप आंखे बंद कर बैठते हैं और कोई व्यक्ति आपकी आंखो के मध्य उंगली रख दे तो आपको ऐसा लगेगा के कोई व्यक्ति आपको उंगली से इशारा कर रहा है ! यह तीसरे नेत्र का अनुभव है ! अगर चन्दन का तिलक उसी आकार का हो जिस आकार का तीसरा नेत्र है और सही स्थान पर लगाया जाए तो आप 24 घंटे उसी स्थान को याद रखेंगे , बाकी सब शरीर को भूल जायेंगे ! यह स्मरण आपको तिलक के बारे में अधिक जागरूक रखेगा और शरीर के प्रति कम तब एक क्षण ऐसा होता है जब शरीर के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता सिवाए तिलक के ! जब ऐसा घटित होता है तब आप अपनी तीसरी आँख खोलने के योग्य होते हैं ! इस साधना में जब आप अपने शरीर को भूल कर केवल तिलक पर केंद्रित होते हैं और केवल उसे ही याद रखते हैं तो आपकी सारी चेतना पुंजीभूत हो कर तृतीय नेत्र पर केंद्रित हो जाती है ! यह इस प्रकार है जैसे आप एक लेंस से सूर्य की किरणों को पुंजीभूत कर एक कागज पर डालते हैं और वो कुछ ही देर में जल उठता है ! उस ताप से सूर्य की किरनें जब पुंजीभूत हो कर एक केंद्र पर पड़ती हैं तो आग उत्पन्न हो जाती है ! इसी तरह जब चेतना सारे शरीर में फैली होती है वो आपके जीवन को बनाये रखने का कार्य करती है ! लेकिन जब वह तीसरे नेत्र पर केंद्रित हो जाती है तो तीसरे नेत्र और साधक के बीच की सारी बाधाएं जल जाती हैं और वह द्वार जो आपको आंतरिक आकाश दिखाता है खुल जाता है !
इसलिए तिलक का पहला उपयोग शरीर पर सही स्थान दिखाता है ताकि आप उसे 24 घंटे याद रखें ! तिलक का दूसरा उपयोग यह है कि इससे आपके गुरु को आपके माथे पर हाथ रखे बिना आपकी उन्नत्ति का पता चल जाता है ! क्योंकि जैसे जैसे वो स्थान नीचे की और आयेगा आप तिलक भी उसी जगह लगाएंगे ! आपको प्रत्येक दिन उसी बिन्दु का अनुभव करना होगा और तिलक भी उसी स्थान पर लगाना होगा अर्थात तीसरे नेत्र पर !

गुरु के हजारों शिष्य हो सकते हैं ! जब शिष्य गुरु के झुक कर चरण स्पर्श करता है तो गुरु निरीक्षण कर लेते हैं  कि उसका तिलक कहाँ लगा है और उससे शिष्य की उन्नत्ति का पता चल जाता है ! उसे पूछना नहीं पड़ता, तिलक यह बता देता है कि शिष्य प्रगति करता जा रहा है  या पीछे अटका हुआ है ! अगर शिष्य तिलक या बिन्दु को नीचे की और गति को महसूस नहीं कर सकता तो इसका मतलब है कि आपकी चेतना पूरी तरह केंद्रित नहीं हुई ! अगर तिलक गलत जगह लगा लिया है तो इसका मतलब है कि शिष्य सही स्थान के प्रति जागरूक नहीं हुया ! जैसे जैसे बिन्दु नीचे की और गति करता है ध्यान का स्थान भी बदलना पड़ता है ! आज के लिए बस इतना ही ! 

क्रमशः  !!

नागेंद्रानंद !!