कृष्ण सम्मोहन बाण साधना | Sammohan Sadhna

Posted on Posted in Mohini Sadhna

महा भारत में जब पांडव अज्ञात वास बनवास काट रहे थे तो एक बार वृह्नाल्ला बने अर्जुन को अपने गुरु जनों और कौरव सेना का सामना करना पड़ा | अर्जुन नहीं चाहते थे कि उन्हें कोई पहचाने इसलिए गुरुजनों का सामना नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने सम्मोहन बाण का इस्तेमाल कर सभी को सुला दिया और अपने भेद को भी छुपा लिया | कालान्तर में ऐसी विद्याएँ लुप्त होती गई जो गुरुकुल में शाश्त्रों की शिक्षा देते वक़्त प्रदान की जाती थी | जिनमें अस्त्र शस्त्र आदि विद्या भी दी जाती थी | सद्गुरु जी ने सभी विद्याओं को पुनर्जीवित कर इस धरा पर स्थापित किया | उन्होंने इन विद्याओं का ही नहीं बल्कि पुरे जीवन का मर्म समझाया  जिसे प्राप्त करना हर साधक का लक्ष्य बन गया |

कुछ ऐसे दुर्लभ प्रयोग व साधनाएं होती हैं जिन्हें सहज प्राप्त करना संभव नहीं होता पर अगर जीवन के कठोर धरातल पर आगे बढना है तो इन साधनाओं को जीवन में महत्वपूर्ण स्थान देना ही होगा | आज हमारे गुरु जी को गये कितने साल हो गये हैं और आज फिर उन विद्याओं को लुप्त होने से बचाने की कोशिश की जरूरत है इसलिए सभी से कहता हूँ कि सिर्फ दीक्षा पर ही डिपेंड ना होयें | आगे बढ़कर साधनाओं को अपनाएं जो हमारे गुरुओं ने हीरक खंडो से भी ज्यादा  मूल्यवान मोती लुटाये हैं उन्हें अपने जीवन में धारण करें तभी हमारे गुरुजनों का सपना पूरा कर पाओगे | अपनी सोच को बदलें और दूसरों के लिए आदर्श साबित हों नहीं तो आने वाली पीढियां धिक्कारेंगी कि आपने उनके लिए क्या किया | हमारे गुरुजन हम सभी को साधना की बहुत बड़ी विरासत देकर गये फिर क्यों नहीं उसे अपना रहे | इसके लिए साधक का भाव रखते हुए अपने और अपने माहोल को बदलने की कोशिश करें |

जहाँ बात सम्मोहन की हो तो श्री कृष्ण जी का चित्रण अपने आप हो जाता है और सिर श्रद्धा से अपने आप झुक जाता है और जीवन में प्रेम की लहर दौड़ जाती है, शरीर में रोमांच पैदा होने लगता है, हवा से संगीत तरंगें प्रवाहित होने लगती है, सारा वातावरण एक महक से भर उठता है, बादलों की गड़गड़ाहट से मेघ संगीत लहरी बजने लगती है यह सभी सम्मोहन तो है जो प्रकृति हमेशा करती है और आप सम्मोहित होते चले जाते हैं | दृश्य आप को अपनी ओर  आकर्षित करते हैं | प्रकृति का यही गुण अपनाकर साधक श्रेष्ट बन जाता है और प्रकृति से एकाकार हो जाता है तो जीवन में सुगंध व्याप्त होती ही है | जब तक प्रकृति तत्व आप में नहीं आता कैसे एक अप्सरा और यक्षिणी को बुला पाओगे, संभव ही नहीं है | कैसे किन्नरी को अपने बस में कर पाओगे, इस तत्व के बिना नहीं हो सकता क्योंकि एक प्रकृति ही है जो सबको अपनी ओर आकर्षित करती है | जहाँ सन्यासी प्रकृति को पूरी तरह अपना लेते हैं तभी तो श्रेष्ठ  बन पाते हैं और प्रकृति उन्हें स्वयं पालने लगती है | अगर साधक बन कर इस तथ्य को अपनाओगे तो सहज ही समझ जाओगे कि प्रकृति क्या चाहती है आपसे | आप त्राटक करते हो या कोई साधना उसमें प्रकृति को ही निहारते हो | उसी प्रकृति में व्याप्त सुगंध आपकी आँखों के रास्ते आपमें भी व्याप्त हो जाती है | प्रकृति को निहारना ही अभ्यास है और अपना लेना सम्मोहन और प्रेम का संगीत या प्रकृति संगीत सुनना क्रिया है, उसे समझ लेना सम्मोहन है   अब सवाल यह है कि ऐसा क्या करें कि प्रकृति का संगीत समझ आ जाये और सम्मोहन की क्रिया अपने आप संपन्न हो जाये जैसे प्रकृति में स्वयं ही होती है | उच्च कोटि के फकीरों और संतो में एक कहावत कही जाती है "कुदरत नार फकीरी की " अर्थात कुदरत या प्रकृति को अपना लेना ही जीवन की पूर्णता है और यही श्री कृष्ण जी का दिव्य सन्देश है क्योंकि वो बार-बार कहते हैं कि अर्जुन तुम मुझे पहचानो, मैं नदियों में गंगा नदी हूँ, दरखतों में पीपल हूँ आदि आदि | ऐसे बहुत उदाहरण देकर अर्जुन को समझाया | क्योंकि श्री कृष्ण पूर्ण सम्मोहन का रूप हैं और प्रकृति को अपना चुके थे तभी जर्रे जर्रे में व्याप्त हैं | इसलिए कृष्ण नाम से बड़ा कोई सम्मोहन मंत्र नहीं है | यहाँ एक सम्मोहन बाण साधना दे रहा हूँ जो गोपनीय तो है ही और अपने आपमें पूर्ण सम्मोहन लिए हुए है | मेरी स्वयं की परखी हुई है |

साधना विधि

1. इसे अष्टमी या श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन और बंसंत पंचमी से शुरू किया जा सकता है | यह 21 दिन की साधना है |

2. इसमें जाप वैजयन्ति माला से करें |

3. मन्त्र जाप 21 माला करना है |

4. जप के वक़्त शुद्ध घी की ज्योत लगा दें |

5. गुरु पूजन, गणेश पूजन और श्री कृष्ण पूजन अनिवार्य है |

6. भोग के लिए दूध का बना प्रशाद मिश्री में छोटी इलायची मिलाकर पास रख लें |

7. हो सके तो षोडश प्रकार से पूजन करें नहीं तो मिलत उपचार जैसा आपको आता है कर लें |

8. वस्त्र पीले और आसन पीला हो |

9. दिशा उत्तर रहेगी |

10. साधना के अंत में पलाश की लकड़ी ड़ाल कर उसमें घी से दस्मांश हवन करना है | ऐसा करने से साधना सिद्ध हो जाती है और आपकी आँखों में सम्मोहन छा जाता है |

इसका प्रयोग भलाई के कार्यो में लगाएं, यह अमोघ शक्ति है |

मन्त्र

|| ॐ कलीम कृष्णाय सम्मोहन बाण साध्य हुं फट ||

||Om kleem krishnaye smmohan baan sadhya hum phat ||

 

हवन करते वक़्त मन्त्र के अंत में स्वाहा लगा लें |