समर्पण 2 – शिव सम्मोहन विद्या का सम्मोहन दर्पण


मैं उन्ही दिनों बाबा जी के साथ उनके शिष्य रमेश से मिलने गया । रमेश ने शिव जी की साधना अघोर विद्या से की थी । बातो में ही चर्चा चल पड़ी और उसने यह विद्या कैसे प्राप्त की, कुछ यूं था । रमेश के शब्दों में – शाम का वक़्त था मैं अपने साथियो के साथ शमशान की तरफ घुमने निकला | हमारे गाँव के बाहर एक नाला बहता है और उसी के पास एक शमशान है | उस दिन भी हम उस तरफ चले गये | आस पास घने दरख्तों के बीच शमशान बना था । जब हम उस तरफ गये तो वहां देखा एक अघोरी बैठा हुआ था | हमने उस तरफ देखा तो वो मेरी तरफ देख कर मुस्कराया | हम कुछ जानने की इच्छा से उसके पास बैठ गये । कुछ समय बाद सारे साथी तो वापिस आ गये लेकिन मैं बैठा रहा | उसने मुझे कहा क्या चाहता है ? तुम क्यों नहीं गये ? मैंने कहा बाबा जी मैं भी कुछ प्राप्त करना चाहता हूँ । यह विद्या कायरों के लिए नहीं है | क्या तुम रात्रि को यहाँ आ पाओगे ? हाँ, मैंने सिर हिलाया, पता नहीं उसकी क्या मौज थी उसने कहा अपने सभी कपडे उतार के एक तरफ रख दो और इस चिता की राख अपने बदन पर मल लो । मैंने ऐसा ही किया, जवानी का जोश था उस वक़्त ना कोई डर होता था | मैं हर बात को तर्क की दृष्टि से देखता था इसलिए इस विद्या की सच्चाई देखने के लिए मैंने उस की बातों का अनुसरण किया ।  पास में ही एक चिता जल रही थी उसके कहने पर उसके पास बैठ गया | वो भी पास आकर बैठ कर कुछ विशेष मन्त्र पढने लगा और मुझे अघोर दीक्षा से दीक्षित किया और विशेष मन्त्र देकर कहा, आज से तुम्हे निरंतर 40 दिन यहाँ आकर जप करना है । 

मैंने जप शुरू कर दिया और सुबह 3.30 – 4 बजे के करीब उसने कहा अब तुम अपने घर जाओ,  रात्रि को आना । रात भर जागने से शरीर में दर्द हो रहा था | मैंने स्नान किया और सो गया । इस तरह 40 दिनों तक वहां जाता रहा | इस दौरान कभी आंधी आती कभी बारिश | अब मुझे भी आनंद आने लगा था | मैं अपने आप को सर्वदा मुक्त समझने लगा था और मेरी साधना का अंतिम दिन भी आ गया | मेरे पिता जी फ़ौज में थे, मैं उनकी रम की बोतल उठा कर साधू के लिए ले जाता था और वो भी बड़ी ख़ुशी से मुझे मार्गदर्शन दे रहा था । आज जप शुरू करते ही हृदय की उत्सुकता बढ रही थी, रात्रि का अंतिम पहर शुरू हो चुका था मेरा मन्त्र निरंतर जारी था । 

ॐ अघोर ……………………………………………………………………………………………..नम; । 

मैं ऐसे आहूत मन्त्र देना यहाँ ठीक नहीं समझता, जिज्ञाशा हो तो personal contact करें ।  गुरु इच्छा हुई तो रहस्य उजागर कर दूंगा । 

जप निरंतर अपने अंतिम लक्ष्य की ओर जा रहा था और एक दम से मेरी आँखों के आगे बिजली सी कौंध गई और आंखे एक दम से बंद हो गई, खुल ही नहीं रही थी, फिर भी कोशिश कर रहा था, आवाज आई -आंखे खोलो वत्स ।  धीरे- धीरे खुद ही आंखे खुल गई , सामने बहुत तेजस्वी विराट प्रकाश पुंज था जो शिव जी के स्वरुप में परिवर्तित हो गया । मगर रूप थोडा अलग था काला रंग, सीस पे सुनहरी जटाएं, पुरे बदन पर भभूत मले हुए, गले में मुंड माला धारण किये हुए, सुंदर छवि देखते ही मुग्ध हो गया था | मांगो क्या चाहते हो वत्स ? उन्होंने कहा । मुझे सम्मोहन विधा की अद्भुत सिद्धी चाहिए, उस वक़्त मेरे मन में जो था मैंने बिना सोचे कह दिया और उन्होंने एक यंत्र बनाना बता दिया कि इस यंत्र को किसी दर्पण पर काजल से लिख लो और जिसपे उसकी चमकार डालोगे वो तुम्हारा हो जायेगा । उसके बाद वो अंतरध्यान हो गये | मैंने अघोरी के चरण स्पर्श किये और घर को चला गया | कुछ दिन के बाद शमशान गया तो वहां से अघोरी जा चुका था | उसके बाद दुबारा मुलाकात उस से नहीं हुई । 

हम बहुत आनंद से सुन रहे थे बाबा जी ने कहा वो दर्पण कहाँ है तो उसने निकाल कर दिखाया | बाबा जी ने उस यंत्र का निरिक्षण किया और नोट कर लिया और उसे कहा इसकी आजमाइश करो तो उसने सामने एक बहुत दूर लड़की जा रही थी उस पर चमकार डाल दी | वो उसी वक्त इस तरफ आ गई और रमेश की तरफ बहुत प्यार भरी निगाहों से देखने लगी ।  बाबा जी ने कहा इसे वापिस भेज दो | जब उसे कहा तू वापिस चली जा, वो चलचित्र की तरह वहां से चली गई | वाकई सभी अद्भुत था और बाबा जी ने उसे कहा यह तो बहुत खतरनाक प्रयोग है ऐसा करो इस दर्पण को अभी मेरे सामने तोड़ दो और रमेश भी पूर्ण समर्पित था, उसने उसी क्षण उसे तोड़ दिया । सच में गुरु ऐसे ही होते हैं जब उन्हें लगता है कि यह शक्ति शिष्य का रास्ता भटका सकती है वो उसे नष्ट कर देते हैं । यह रहस्य मेरी समझ में आ चुका था । (क्रमशः)