श्री कालरात्रि साधना – पूर्ण सुरक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति || Shree Kalratri Sadhna

जीवन में हर प्रकार के शत्रुओं का संहार करती है देवी कालरात्रि | शत्रु तो हर एक के जीवन में होते हैं | बाहरी शत्रु तो दिखाई दे जाते हैं पर कुछ शत्रु ऐसे भी हैं जो गुप्त शत्रु कहलाते हैं | मनुष्य को सबसे ज्यादा खतरा भी इन्ही शत्रुओं से रहता है जैसे जीवन में रोग, दरिद्रता, अज्ञानता, कर्ज, पीड़ा आदि भी शत्रु हैं | देवी के इस रूप की आराधना से समस्त प्रकार की शत्रु बाधा तो दूर होती है साथ में अपनी मूर्खता का नाश कर साधक नए ज्ञान की खोज में तत्पर होता है | देवी का रूप लाक्षणी स्वरूप कहलाता है | जिसके हाथ में खड्ग है जो समस्त शत्रु विनाश का प्रतीक है और दूसरे हाथ में मुंड जो साधक की अज्ञानता या मूढ़ता को हाथ में पकड़े हुए है | गधे की सवारी भी इस बात का बोध कराती है कि हमारी समस्त मूर्खता पर विजय दिलाने में सक्षम है | क्योंकि वह हमारी मूर्खता पर अधिकार किए है | देवी सहस्रार चक्र में विराजमान मानी जाती है | देवी के इस स्वरूप के बारे में श्री मारकंडे पुराण में कहा गया है | एक बार भगवान शंकर जी ने यह जानने की चेष्टा की कि मेरे भीतर कौन कौन सी त्रिगुणात्मक शक्तियां हैं तो पहले सतो गुणी शक्ति के रूप में योगमाया शक्ति प्रकट हुई जिसने भगवान को बताया कि समस्त प्रकार की सिद्धियों को प्रकट करने वाली मैं ही सतोगुणी शक्ति हूँ, जो आपके भीतर विराजमान हूँ | इसके बाद रजोगुणी शक्ति माँ पार्वती प्रकट हुई जिसने कहा कि हे स्वामी मैं ही आपकी अर्धांगी के रूप में रजोगुणी शक्ति हूँ | तब भगवान ने और देखना चाहा और तमोगुणी शक्ति का स्मरण किया तो बहुत ही भ्याग्रता लिए तमो गुणी शक्ति प्रकट हुई जिसने भगवान को बताया कि हे ईश्वर मैं ही आपके अर्धनारीश्वर रूप में आपकी अर्धांगी हूँ | मैं सतोगुणी शक्ति और रजोगुणी शक्ति के रूप में प्रकट होती हूँ | मैं काल से भी परे हूँ | मैं आपकी इच्छा को यथार्थ रूप देती हूँ | मैंने ही आपकी इच्छा से सृष्टि को पैदा किया है और अंत में इसका विनाश भी मैं ही हूँ | मैं कालरात्रि हूँ | देवी के इस दिव्य स्वरूप की महिमा बहुत ही परे है | काल अर्थात जहां काल की सीमा खत्म हो जाती है | काल का मतलब समय और रात्री का मतलब अंधकार जो काल से परे है, अन्धकार पर विजय दिलाने में सक्षम है | ऐसी देवी के दिव्य स्वरूप के ममतामयी स्वरूप का ध्यान करना श्रेष्ठ माना जाता है | यहाँ मैं देवी के इस दिव्य स्वरूप की साधना दे रहा हूँ जिसकी महिमा महान है | इस साधना से मनुष्य के समस्त प्रकार के शत्रु, रोग, व्याधि, कर्ज आदि दूर होते हैं | मूर्ख से मूर्ख प्राणी भी अपने भीतर ज्ञान का स्रोत फूटता महसूस करता है | अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करता हुआ दिव्य ज्ञान को पा लेता है |

विधि

श्री कालरात्रि दिव्य यंत्र 

 

 


इस यंत्र का निर्माण भोज पत्र पर अष्टगंध या केसर कुंकुम आदि से करें | यंत्र को आप ताम्रपत्र पर भी बनवा सकते हैं | यह देवी का सर्वश्रेष्ठ यंत्र माना गया है | जिसकी महिमा शब्दों में नहीं कही जा सकती | यंत्र का निर्माण नवरात्रि में प्रथम तिथि को किया जा सकता है या कभी भी कर सकते हैं | एक बाजोट पर काला या लाल वस्त्र बिछा कर देवी का सुंदर चित्र स्थापित करें | चित्र का पूजन पंचौपचार से करें जिसमें धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, पुष्प आदि लें और भोग के लिए मीठी रोटी बना कर उसका भोग लगाएं | एक पात्र में उड़द की दाल यानि काली दाल रख लें | उसके उपर एक नारियल पानी वाला लेकर उस पर काला वस्त्र लपेट कर मौली से बांध दें | उसे उड़द के पात्र पर रख कर देवी माँ को भेंट करें | एक अन्य पात्र में थोड़ी काली मिर्च भी लेकर पास बाजोट पर स्थापित कर दें | एक काला रुमाल भी बाजोट पर स्थापित करें और उसका भी पूजन पंचौपचार से करें | तेल का चौमुखा दिया पूजा काल में जलता रखें इस बात का खास ध्यान रखें | यह एक बहुत ही तीक्ष्ण साधना है | इसके परिणाम भी बहुत जल्द मिलते हैं | दिये का पूजन भी आप कर लें | कलश अलग स्थापित कर सकते हैं जैसे नवरात्रि में आप सभी करते ही हैं | अब सद्गुरु पूजन कर आज्ञा लें और श्री गणेश का पूजन करें | फिर देवी के निम्न मंत्र को हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर पढ़ते हुए देवी को अर्पित करें और इस मंत्र का 21 बार जप कर यंत्र पर गंगा जल का छींटा दें, इससे यंत्र सिद्ध हो जाएगा | यंत्र का पूजन पंचौपचार से करें |


मंत्र

|| ॐ सर्वावाधा प्रशमनं त्रैलोकस्याखिलेश्वरी एवमेव त्वया कार्यम स्मद्ध वैरी विनाशनं ||

साधक लाल आसन पर लाल वस्त्र धारण कर उतर या पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठें | इस साधना के लिए सांय काल से लेकर मध्य रात्री तक का समय श्रेष्ठ कहा गया है | पूजन के पहले यदि देवी कवच का पाठ कर लिया जाए तो श्रेष्ठ है नहीं तो देवी के 108 नाम का जप कर लें और दुर्गा चालीसा का पाठ कर सकते हैं | पूजन के बाद निम्न मंत्र का जाप 11 माला करें | माला रुद्राक्ष की ठीक है | अगर न मिले तो काले हकीक की ले लें |

साधना मंत्र

|| ॐ ह्रीं ऐं ज्वल ज्वल कालरात्रि देव्यै नमः ||

आप सप्तमी तक यह साधना कर सकते हैं और अष्टमी को 7 कन्या का पूजन करें और एक पात्र में अग्नि जलाकर हवन सामग्री में पाँच मेवा और काली मिर्च मिला कर 108 आहुति इसी मंत्र में स्वाहा लगा कर डालें |

हवन मंत्र

|| ॐ ह्रीं ऐं ज्वल ज्वल कालरात्रि देव्यै स्वाहा ||

कन्याओं को दक्षिणा आदि देकर संतुष्ट करें | आरती उतारें | साधना के बाद रुमाल यंत्र और माला को छोड़कर बाकी सामग्री जल प्रवाह कर दें उसी बाजोट पर बिछे वस्त्र में बांध कर | यह रुमाल आप अपने पास रखें | किसी भी काम या कोर्ट कचेहरी में साथ लेकर जाएँ | जब तक यह वस्त्र आपके पास है शत्रु चाहे कितना भी प्रबल हो आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता | इस साधना से साधक पर किए समस्त तंत्र प्रयोग नष्ट हो जाते हैं | शत्रु विनाश की ओर चल पड़ता है | यंत्र को आप पूजा स्थान में रख सकते हैं या किसी चाँदी के तावीज में धारण भी कर सकते हैं | यह साधक को अमोघ सुरक्षा और सम्मोहन देता है |

देवी अंक साधना

कालरात्रि देवी का प्रिय अंक 2 है | एक भोजपत्र पर 2 का अंक लिखें और उसे मंत्र पढ़ते हुए गंगा जल के छींटे दें और पंचौपचार पूजन कर बाजोट पर साधना करते हुए साथ ही रख दें | यह अंक अपने पास रखने से सभी कार्य बाधा दूर होती है | कार्य में सफलता मिलती है और मनोकामना पूर्ण होती है | यह साधना मेरी प्रिय साधना है | इससे मैंने देवी की कृपा प्राप्त की है | आने वाली नवरात्रि में मुझे इससे अच्छी साधना और नहीं महसूस हुई इसलिए इसे पोस्ट कर रहा हूँ | सद्गुरु जी के श्री चरणों में और माँ से प्रार्थना करता हूँ माँ आप सभी को पूर्ण सफलता प्रदान करें |