पारद संस्कार रहस्य एवं इनका महत्व

रस शाश्त्र में पारद में आठ प्रकार के दोषों का वर्णन है जिन्हें पारद की आठ केंचुलियाँ भी कहा जाता है | बिना इनके शोधन के पारद का किसी भी प्रकार की औषधि में या रस कर्म में प्रयोग नहीं किया जाता है क्योंकि बिना आठ संस्कार संपन्न पारद को भयंकर विष ही माना जाता है | इसी विष को आठ संस्कारों के द्वारा अमृत तुल्य बनाया जाता है जिससे पारा अपने समस्त दुर्गुणों को छोड़ कर अपने अलौकिक गुणों को प्रकाशित करता है | यही पारा आगे के संस्कारों से आच्छादित होकर रस कर्म व औषधि निर्माण में सहायक होता है |

आठ संस्कारों का विधान पूर्ण रूप से सीख कर इस क्रिया को करने से मानव के पूर्व जन्मों के पापों का भी नाश होता है | आठ संस्कार होने के पश्चात पारद में गंधक जारणा, अभ्रक जारणा, स्वर्ण जारणा लेने की अद्भुत क्षमता प्रकट हो जाती है जोकि साधारण पारद में नहीं होती | इसलिए सभी शाश्त्रों में पारद के आठ संस्कारों के महत्व को खोल कर समझाया गया है | जिससे की साधक पूर्णता को प्राप्त कर सके | यह आठ संस्कार हमें गुरु के सानिध्य में बैठकर ही पूर्ण करने चाहिए जिससे हमें इन संस्कारों में आने वाली दिक्कतों व उनके निराकरण का पता चल सके | संस्कारों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री का पता चल सके | संस्कार करने की पूरी प्रक्रिया भली भाँती समझ आ सके | क्योंकि आठ संस्कार को ही रस शाश्त्र में इस सम्पूर्ण रस कर्म के नींव माना गया है क्योंकि अगर नींव ही मजबूत नहीं होगी तो उस पर बनने वाली इमारत की गुणवत्ता पर शक रहेगा | इसलिए यदि नींव मजबूत होगी तो आगे की क्रियाएं व संस्कार भली भाँती संपन्न हो पाते हैं, अन्यथा नहीं |

क्रमशः