तीसरे नेत्र का रहस्यमयी विज्ञान –आध्यात्मिक विज्ञान -5 | The Mystery of Third eye-5

भारत में जैसे तीसरे नेत्र के लिए तिलक का उपाय खोजा गया, तिब्बत में आज्ञा चक्र तक पहुँचने के लिए शल्य क्रिया करने का उपाय निकाला | तिब्बतिओ ने आज्ञा चक्र तक पहुँचने के लिए सभी की तुलना में सबसे अधिक प्रयत्न किए | वास्तव में जीवन और उसके विविध पक्षों से सम्बंधित तिब्बत का ज्ञान तथा समझ तीसरे नेत्र की समझ पर आधारित है | तिब्बतियों ने तीसरे नेत्र तक पहुँचने के लिए प्रयत्न किए | उसे बाहर से तोड़ कर खोलने की क्रिया द्वारा, परंतु उस स्थान पर शल्य क्रिया द्वारा पहुंचना योग अभ्यास की क्रिया से बिलकुल भिन्न है | जैसा कि भारत में किया गया योग अभ्यास द्वारा जब दिमाग का आधा भाग सक्रिय कर दिया जाता है तो वह चेतना के विकास द्वारा होता है | चेतना के विशुद्ध और पवित्र हुए बिना उस स्थान को बाहर से खोलने, दिमाग के आधे भाग को सक्रिय हो जाने पर उसकी उपलब्धियों के दुरुपयोग होने का खतरा रहता है | इसका कारण यह है कि मुनष्य तो पहले वाला ही रहता है, उसकी चेतना अंदर से रूपांतरित नहीं होती | आवश्यकता जिस बात की होती है वह है ध्यान द्वारा अंदर से रूपांतरित होना | तिब्बत में हम जहां तिलक लगाते हैं वहाँ भोतिक उपकरणों से छेद बनाने के प्रयत्न किए गए | मस्तिष्क में सोई पड़ी अनेक शक्तियों को जाना और समझा गया | जहां तक आध्यात्मिक अनुशासन का प्रश्न है, तिब्बत एक महान देश न बन सका | यह बहुत आश्चर्य जनक बात है कि तिब्बत ने बहुत कुछ किया मगर एक बुद्ध को जन्म न दे सका | भारत में आज्ञा चक्र पर छेद करने की बजाय शरीर के अंदर ध्यान और पूर्ण ऊर्जा को केन्द्रित करने के प्रयत्न किए गए ताकि अंदर से उठती ऊर्जा से ही तीसरी आँख खुल जाए | इसके लिए मन को उच्च स्तर तक अनुशाषित करना पड़ता है |

ईसा ने कहा “अपनी आंखो को एक होने दो और पूरा शरीर प्रकाश से परिपूर्ण हो जाएगा” | 

ईसा मसीह का यह सबसे रहस्यमयी कथन भारत की रहस्य वादी विचारधारा की पुष्टि करता है और संकेत करता है कि इसकी पृष्ठभूमि इसी विचारधारा की है | भारत में ही तीसरे नेत्र और प्रकाशीय शरीर (Body of light) का गुप्त शिक्षाओं के अंतर्गत सबसे केन्द्रीय, महत्वपूर्ण और विश्वव्यापी तथ्यों का वर्णन किया गया | तीसरी आँख का महत्वपूर्ण पहलू अपने अंदर देखना है | आप जितना भी अपने अंदर देखते हैं उतना ही दूसरों के अंदर देखने में सक्षम हो जाते हैं |

हम तीसरी आँख को खोलने के प्रयत्न तो करते हैं लेकिन उसे “हारा केंद्र “जिसे मृत्यु केंद्र भी कहते हैं, जोड़ने का प्रयत्न करते हैं जो ठीक नाभि के नीचे है | यह बोद्ध ध्यान विधियों और मार्शल आर्ट में विशेष महत्व  रखता है | इससे इसका साम्जस्यपूर्ण विकास होता है | इसके बिना आप एक ऐसे वृक्ष  की तरह हो जिसकी शाखाएं और फूल तो विकसित हो चुके हैं  लेकिन उसकी जड़ें नहीं हैं | असल में हम दो धारी बाण वाली चेतना के रूप में कार्य करते हैं क्योंकि चेतना अंदर भी जाती है और बाहर भी आती है | अगर आप अपने अंदर ढेखने का प्रयत्न करते हैं तो अपने अंदर अपने हाथ को महसूस करते हैं  तो आप उसका आभास तीसरी आँख से करते हैं |

इसके साथ ही आप तत्काल भौतिक शरीर के अंदर उस ऊर्जा शरीर में जा रहे होते हैं | कुछ मठो में तीसरे नेत्र को जगाने के लिए मेरुदंड के नीचे पड़ी सुप्त ऊर्जा को तीसरी आँख तक ले जाने के प्रयत्न किए जाते हैं और कुछ साधू भी ऐसा करते हैं | इन्होने चेतना की अधकचरी अवस्था में तीसरी आँख की अध्यात्मिक दृष्टि जगा ली होती है | वास्तव में वह कार्य नहीं करती | परंतु मेरे अनुभव के अनुसार इसमें अनेक खतरे हैं | इसमें एक तो जड़ें अविकसित रह जाती हैं, ऊर्जा रुकी रह जाती है, वह रिस सकती है या नीचे केन्द्रों में फंसी रह सकती है | लेकिन जब हम तीसरे नेत्र की ऊर्जा हारा में ले जाते हैं तो नीचे केन्द्रों के साथ काफी कार्य करते हैं | इसलिए पागल होने, सनक चढ़ने, काले जादू होने, या मृत्यु तक की संभावना बहुत कम होती है | तब इन चमत्कारी, रंग भरे, परामानसिक अनुभवों की माया में खो जाना सरल नहीं होता | यह अनुभव असामान्य और विशिष्ट होते हैं और शक्ति को बहुत अंहकारी और उच्च बना सकते हैं | इसलिए यह हमेशा स्मरण रखना, अनुभव चाहे कितना चमत्कारिक हो आप वह अनुभव नहीं हैं, आप तो सदैव अनुभव करने वाले हैं | निश्चित ऊर्जा का ऊपर की और गति करना तो फिर भी घटित होगा क्योंकि आप जितना भी नीचे गहरा जायेंगे उतना ही ऊपर जायेंगे | जितना हारा केंद्र में गहराई के साथ जायेंगे उतना ही तीसरी आँख में क्योंकि इन दोनों चक्रों का परस्पर संबंध है | न्यू ऐज मार्किट में ऐसे अनेक कोर्स हैं जिन्हें आप करके अपनी आंतरिक दृष्टि के करीब पहुँच जाते हैं | लोगों की धारणा है कि इससे आध्यात्मिक विकास होगा लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है | उदाहरण के लिए आप त्राटक करते हो इससे आप प्रभा मण्डल को देख लोगे और उस के रंग भी बता दोगे पर यह अभ्यास बिलकुल ऐसे है जैसे जिम में जाकर अपने हाथ मजबूत कर लिए और पैर रह गए | इस लिए हमेशा याद रखो कि जब आप कुछ देख रहे होते हैं वह आपका अपना अनुभव होता है | आपकी अपनी सच्चाई होती है | लोग जो भी देख रहे होते हैं वो भिन्न हो सकता है | लेकिन आप उस अनुभव को जीते हो इसलिए वह आपका अपना अनुभव है | इस बात को हमेशा ध्यान में रखना नहीं तो चीजों में खो जाओगे |

तीसरी आँख के अनुभव का दूसरा पहलू समकालिकता है | इसका अर्थ है चीजों में व्याख्या नहीं किए जा सकने वाले संयोगों और संबंधों का मिलना | अगर आप शांत हैं किसी के साथ समकालिकता में हैं तो आप उसके द्वारा किए जा रहे अनुभवों को महसूस कर सकते हैं | उसकी ऊर्जा के विचारों को जान सकते हैं क्योंकि विचार कोई सीलबंद चीज नहीं जो आपके अंदर हैं | वह आपसे अलग आपके चारों और हैं | अगर आप अपने को देख सके, एक साक्षी बन सके, कई गोलाकार घेरों के बिन्दु में देख सके तो आप जान पाओगे कि आपके विचार आपके स्वप्न केंद्र के बहुत निकट हैं | लेकिन फिर भी वह आप नहीं हैं | वास्तव में यह अनासक्ति का यह ज्ञान तीसरे नेत्र में प्रवेश करने का एक भाग ही है | अंत में हर चीज स्वप्न की तरह है, चाहे अंदर की हो, चाहे बाहर की | क्योंकि वह स्थाई नहीं है | इसलिए स्वप्न की तरह ही है | केवल स्वप्न देखने वाला ही स्थाई है और सत्य है और इसलिए हमेशा ध्यान पर बल दिया जाता है | कभी तीसरी आँख और उसकी आश्चर्य जनक शक्तियों पर बल नहीं देना चाहिए | केवल अपने होने का या अपने अस्तित्व के केंद्र की और चलना जारी रखो और अस्तित्व को ही शेष बातों की चिंता करने दो 

|| क्रमशः || 

नागेंद्रानंद