जब तीसरा नेत्र जाग्रत अवस्था में आ जाता है तो किसी भी व्यक्ति का औरा अर्थात प्रभा मण्डल देखने की शक्ति आ जाती है | कोई भी व्यक्ति आपको धोखा नहीं दे सकता | क्योंकि वह जो भी कहता है, वह उस समय तक अर्थहीन है | जब तक वो उसके प्रभामण्डल के अनुकूल नहीं है | अगर वो कहता है कि वो गुस्सा नहीं करता परंतु उसके प्रभामण्डल का लाल रंग दिखा देता है कि उसमे कितना गुस्सा है | जहां तक उसके प्रभामण्डल का सवाल है वो धोखा नहीं दे सकता, क्योंकि वो प्रभामण्डल के बारे में कुछ नहीं जानता | वो जो भी कहता है उसके प्रभामण्डल से जांचा परखा जा सकता है कि वो सही है या गलत | आप अपने तीसरे नेत्र से विकिरण (radiation) और प्रभा मण्डल (aura) आदि देखने लग जाते हैं |
एक बात बहुत ही ध्यान रखने योग्य हैकिजब कभी तीसरा नेत्र बंद होता है और अचानक उसमें ऊर्जाआजाती है | इस तरह सेकई बारछिद्र हो सकतेहैं | यह ऊर्जा अंदर सेनिकलती हुई बुलेट (बंदूक की गोली की तरह होती)है | यह एकसंग्रहितकेन्द्रित अग्नि होती है | इससे छिद्र हो सकता है, अतःजब आप तीसरे नेत्र से देखने काअभ्यासकरतेहैंतो इस बात का खास ध्यानरखें कियदि आपको इस स्थानपरजलन का आभास हो तो डरेनहीं | हाँअगर आपको इस तरह लगे की यह ऊर्जा ऐसी अग्नि की तरह हो गई है जो बाहर निकलने वाले सक्रिय बुलेट की तरह लगती है तोअभ्यासतुरंत बंद करदें | अगर आपको लगता है , किएक बुलेट वहाँ है जो माथे को फोड़ कर बाहर आना चाहती है तो साधना बंद कर देनी चाहिए | आंखे खोल कर जितना उन्हे गति शील कर सकतेहैं, इधर उधरघुमासकतेहैं, घुमाएँ| इससे आपको होने वाला अनुभव दूर हो जाएगा और आप रिलैक्स होजायेंगे | और जब तक आपको योग्य मार्ग दर्शक नहीं मिलतातब तकआपअभ्यास ना करें क्योंकिइस से कपाल टूटने का खतरारहताहै |
अगर ऐसा हो जाए तो यह गलत नहींक्योंकिव्यक्ति ने ऐसी चीज प्राप्त करलीहै जोमृत्युसे परे है | लेकिन उचितयहीहैकिजब भी आप यह अनुभवकरें कि कुछगलत घटने वाला है तोअभ्यासतुरंत रोकदें | यह बात इसी साधना पर नहींबल्किसभी साधनायोंपरलागू होती है | किसी भी विधि को करते वक़्त अगर आपको यह अनुभव होकिइससे गलत होने वाला है तो साधना बंद कर देनी चाहिए|
भारत मेंकई विधियाँसिखाई जातीहैं | साधक उनसेअनावश्यककष्ट पाते हैं| क्योंकिजो उनकोप्रशिक्षणदेतेहैं,उन्हे खतरे तक का पता नहीं है | और साधक भी आंखे बंद कर उनका अनुसरण करतेहैं | वह नहीं जानतेकिवह किधर जा रहेहैं| क्या कर रहेहैं | इसलिए अगर ऐसा लगे तो जब तक मैंना कहूँ अभ्यास ना करें |
तीसरे नेत्र को खुलते हुए अनुभव करना –
संसार को परमात्मा की दीहुईयहसबअनेकोंदेनोंमें से एक है –किदोनोंआँखोंके मध्य तीसरी आँख भी है,जिसका आंतरिक अंशसाधारणतयनिष्क्रिय रहता है |व्यक्ति को इसके लिए कठिन साधना करनी पड़ती है | अपनी सारी काम ऊर्जा कोगुरुत्वाकर्षणके विपरीत उपर की और लाना होता है और जब वह ऊर्जा तीसरी आँख तक पहुँचती हैतोवह खुल जाती है और जब वह खुलती है तो एक प्रकाश की चमक होती है | जोचीजेंआपके लिए पहलेस्पष्टनहीं थी वोस्पष्टहोने लग जातीहैं | शीर्ष आसन से खतरा –ज्यादातरयोग प्रशिक्षक शीर्ष आसन काअभ्यासकरातेहैं |जिसका मूलआधारइस ऊर्जा को तीसरी आँख तक लाना होता है | पर ऐसा किसी ग्रंथ में नहीं लिखा है | यह तो एक गुरुद्वाराएक शिष्य के कानो में फुकेजाने वालेअन्य रहस्यो में से एक है | इसकी और भी बहुत सीविधियां हैं | जब मैं देखने का साक्षी बननेपरज़ोर देताहूँ | यहतृतीयनेत्र जागरण करने कीसबसे सुंदर विधि है| क्योंकिजो देखना है अंदर देखना है,ऊपरीआँखेंसिर्फ बाहर की और देखतीहैं,इसलिएइन्हेंबंद करना होगा | जब आप अपने अंदर देखने का प्रयत्न करतेहैंतो इसका अर्थ है कोई आँख जैसी चीज है जो देखती है | आपके विचारकौनदेखता है?यह आंखे तो नहीं देखती,यहकौनदेखता हैकिआपके अंदरगुस्साउठ रहा है |देखने का स्थानप्रतीकात्मक रूप में तीसरा नेत्र कहा जाता है | अपने प्रति साक्षी होनासबसेसूक्ष्म विधि है | क्योंकिपृथ्वी केगुरुत्वाकर्षणपर निर्भर होना खतरनाक हो सकता है | यदि एकबाढ़की तरह बहुत अधिक ऊर्जाबहतीहुई नीचे आती है | वह आपकेमष्तिष्कके छोटे छोटे स्नायुओ को नष्ट कर सकती है | यह स्नायु इतने अधिक कोमल होतेहैं ,जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती!आपके छोटे से सिर में करोड़ो स्नायुहैं , जिन्हेंआँख नहीं देखती | यह बहुत हीसंवेदनशीलऔर कोमल होतेहैं | अगर ऊर्जा कीबाढ़ आजाए तो उनमें से बहुत सेबह जायेंगे याटूटजायेंगे |
विज्ञान भी एक दिन इस क्षेत्र में प्रवेश करने वाला है | उन्होंनेइस पर खोजकरनीशुरू कर दी हैकि पशुओंने अपनेमष्तिष्ककोविकसित क्योंनहीं किया |इसका कारण हैकि पशुओंका शरीर धरती केसमांतरहोता है | उसमें ऊर्जा सभी अंगो में समांतर चलती है | अतः मष्तिष्कके वह कोमलकोष विकसितनहीं हो सकते |
यहसबइसलिएहुआ किमनुष्य अपने दोनोंपैरों परखड़ा है,इसलिए उसकामष्तिष्क गुरुत्वाकर्षणसे इतनाप्रभावितनहीं हुया | क्योंकिवहाँ बहुत कमगुरुत्वशक्ति पहुँचती है | इसलिएमष्तिष्ककेकोमलस्नायु कोविकसितहोने का अवसर मिल गया |इसलिए हर व्यक्ति को शीर्ष आसन लगाने का सही टाइम पता होना चाहिए | मेरे ख्याल से तीनसेकेंडबहुतहैंऔर इससेकहींबेहतर है जब जरा सा ऊर्जा का बहावहुआतो आप सीधे होजायें | अपनेपैरों परयह थोरा साबहावआपकेमष्तिष्कको पुष्ट करेगा और तीसरी आँख खोलने में हेल्प करेगा | कभी सोचा आपनेकिसोते वक़्त तकियाक्योंइस्तेमाल किया जाता है | क्योंकिजब आप बिना तकिये कीसहायता केसोते हो तो आप में ऊर्जापशुओंके समानबहावमें हो जाती है और 8 घंटे में आपके स्नायु नष्ट कर देती है | इसलिए तकिया एक कवच का काम करता है | इस पर निर्भर करता हैकिआपका स्नायु तंत्र कितनाकोमलहै |आपजितनेअधिक बुद्धिमानहैं, उतनी ही कम जरूरत है शीर्ष आसन की | मैं कभी शीर्ष आसन इस्तेमाल नहीं करताक्योंकिमैं देखने की बात कहताहूँ ,इस देखने कीकलासे ही आपकी तीसरी आँख खुलने लग जाती है | तीसरी आँख को बाहर से स्पर्श कर जगाना जानताहूँ ,पर यह भी तभी है जब व्यक्ति ध्यान आदि क्रिया कर्ता है और मैं समझताहूँ किकिसी भी बिन्दुपरअधिकदबावडालना कभी कभी अचेतनअवस्थामें ले जाता हैक्योंकिजो साधक केवल गुरु से इससम्बन्धसे दीक्षा लेतेहैं , खुदकुछनहीं करते और तरह तरह के ऊर्जा प्रति सवाल पुछतेहैंतो कोई भी अचेतनअवस्थामें जा सकता है | क्योंकिइस बिन्दुपरबहुत अधिक आघात नहीं किया जा सकता | इससे ऊर्जा मंद पड़ जाती है और ऊर्जा जब बहुत अधिक धीमी हो जाती है तोकुछभी घटित नहीं होता | इसलिए दीक्षा के बाद ध्यान आदिक्रियाएँकरना जरूरी है | यहीसाधना है औरसद्गुरुजी का दिया उपदेश है | गुरु जब आपको देखतेहैंतो यह भी एक स्पर्शक्रियाही हैक्योंकिआंखो से ही वो दूर सेस्पर्शकर लेतेहैंऔर शक्तिपात अपने आप हो जाता है | इसलिए कहताहूँ , किबस अपनीआँखेंबंद कर देखने की कोशिश करो और तीसरी आँख अधिक से अधिकसक्रियहो जाएगी और यह तीसरी आँख के अनुभव हीउच्च स्तरकीआध्यात्मिकताकेद्वारखोल देगा |