गोगा जाहर पीर का जन्म मंगलवार नवमी तिथि को हुआ जो आज गुगा नवमी के नाम से जानी जाती है | कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन आती है | गोगा जी की कथा बहुत ही दिलचस्प है | काशल और वाशल दो बहने थी | वाशल माता गुरु गोरख नाथ जी की सेवा करती थी | क्योंकि गुरु गोरखनाथ उनके कुल गुरु थे | बहुत समय तक भी जब उनके औलाद नहीं हुई तो गुरु गोरखनाथ जी एक दिन आए और शहर के बाहर एक बाग में डेरा लगा लिया | माता वाशल उनकी शरण मे गई | गुरु गोरखनाथ जी ने सुबह आने को कहा कि सुबह मैं तुझे फल दूंगा | माता ने आकर सारी कथा राजा को सुनाई | उसकी बहन काशल सुन रही थी | माता काशल सुबह माता वाशल के वस्त्र पहन कर गुरु गोरखनाथ जी के डेरे चली गई और फल ले आई | उस फल से दो जोड़े बच्चे पैदा हुए, जिन्हें जौड़े पीर भी कहते हैं | जब माता वाशल गई तो गुरु गोरखनाथ सारी बात समझ गए और ईश्वर से कहा कि मेरा वचन खाली न जाए इसलिए मुझे फल देना है | एक बली रूह चाहिए तो ईश्वर से राजे जनमेजे की रूह मांगी | जब वो उस रूह को ले आ रहे थे, वासुकि नाग पहरा दे रहे थे जोकि ईश्वर के दुआरपाल हैं | वहाँ जब नाग ने कहा, हमे भी दिखाओ क्या ले जा रहे हैं तो जैसे ही गुरु गोरखनाथ जी ने मुट्ठी खोली तो नाग ने सोचा इसने तो हमारे कई कुल नष्ट कर दिये, अगर यह धरती पर चला गया तो और न जाने क्या करेगा और रूह को निगल लिया | उस वक़्त बाल्मीकी जो सफाई का काम करते हैं | वो पीछे खड़ा देख रहा था और उसने झाड़ू से उस नाग पर वार किया | रूह गुरु गोरखनाथ के हाथ में फिर आ गई तो गुरु गोरखनाथ जी ने उसे वरदान दिया कि गुगे की कथा तुम्हारे खानदान के लोग गायेंगे | तब से हर बाल्मीकि गुगा को पूजता है | गुगे का जन्म राजपूत खानदान में हुआ | उसके जन्म के कुछ दिन बाद ही उसके पिता का स्वर्गवास हो गया | गुगा जी हर रोज नाग बाम्बी पर जाते और नाग निकाल कर मारते रहते और शाहक्ण्डी जिसे नागो के स्थान के रूप मे पूजा जाता है | वहाँ चादर लेकर सो जाते | इस तरह बचपन से जवानी तक की उम्र पार की | उसके बाद कारु देश बंगाल से गुगे के लिए रिश्ता आया और वो पंडित जब आया तो उसने गुगे का पता पूछा तो लोगो ने उसे बताया के उसमें एक ओलो है मतलब एक आदत है वो शाहकण्डी जाकर नागों को मारता रहता है | जबकि बंगाल के राजा नाग वंश के थे | नाग घुमेर माता स्लीयर का मामा था | वो पंडित गुगे के भाइयों को रिश्ता कर गया और गुगे को यह बात अच्छी न लगी | उसने कहा यह मांग तो मेरी है | वह गुरु गोरखनाथ जी की शरण में गया | सारी बात बताई तो गुरु गोरखनाथ जी पाताल में गये | गोरखनाथ जी ने तक्षक नाग को कहा कि गुगे की मांग वापिस लानी है | तक्षक नाग ब्राह्मण का रूप लेकर बंगाल पहुँच गया उस समय माता स्लीयर अपनी सखियों के साथ बाग की सैर को गई थी | तक्षक नाग फूल का रूप लेकर पींघ पर लटक गया और माता स्लीयर को डस लिया | सभी इलाज करने बुलाये गये लेकिन कोई आराम न हुआ | फिर तक्षक नाग ब्राह्मण का रूप लेकर एक कुँए परबैठ गया और कहा कि मैं इलाज कर सकता हूँ | उसे भी दरबार में बुलाया गया | जब उसने डाली का झाड़ा किया तो उससे माता स्लीयर ठीक होने लगी फिर दूसरी डाली करने से सेहत और खराब हो गई तो तब उसने कहा कि इसका मंगना पहले जिस जगह हुआ है वहाँ करना पड़ेगा तभी ठीक होगी | राजा ने मान लिया | उसने लिखके ले लिया और माता को ठीक कर दिया | अब जब राजा ने विचार किया कि वहाँ रिश्ता करना नहीं चाहते तो मंत्रियो की सलाह पर सवा किलो राई बांध दी और कहा, एक दाने के पीछे एक बाराती आए और कहा, अगर बारात कम हुई तो रिश्ता नहीं करेंगे | इस पर गुरु गोरखनाथ जी ने रिश्ता स्वीकार कर लिया और सभी नागों और देवताओं को बारात में आने का न्योता दे दिया | अब बारात विवाह के लिए रवाना हुई और काले बाग में डेरे लगा लिए तो वहाँ के राजा ने बारात को भगाने के लिए बहुत प्रयत्न किए लेकिन गुरु गोरखनाथ जी के आगे उनका कोई जादू नहीं चला और शादी कर वापिस आ गये | जब बारात शहर के बाहर थी तो गुगे के भाइयों ने हमला कर दिया जो गुरु गोरखनाथ के दिये हुए फल थे | उन्हे जीतना भी आसान नहीं था | युद्ध हुआ तो गुगे ने उनके सिर काट दिये | बारात घर आ गई तो माता को जब इसका पता लगा कि इसने अपने भाइयों को मार दिया है जो उसकी मासी के पुत्र थे तो गुगे को श्राप दे दिया कि तुझे इस शहर का अन्न जल हराम है | गुगा जी धरती माता को कहने लगे मुझे अपनी शरण में ले लो | धरती माता ने कहा मैं सिर्फ मुसलमान को अपने में समाने की इजाजत देती हूँ | गुगा जी पहले कलमा सीख कर आओ तो गुगा जी खवाजा रत्न हाजी बठिंडे जाकर मुरीद बने | जाहर पीर के नाम से मशहूर हुए और माता धरती में समा गये | बागड़ राजस्थान में आज भी गुगा माड़ी पर बहुत भारी मेला लगता है | जहां गुगा जी समाये थे | वह अपने भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं | आने वाले समय से अवगत कराते हैं | गोगा जी की साधना काफी उग्र साधना है | क्योंकि इनके साथ सभी वीर नहर सिंह वीर , वावरी वीर और हनुमान , भैरव आदि सभी शक्तियां चलती हैं | नागों का सुल्तान होने से नाग इस साधना में बहुत आते हैं | यूं तो गुगे की कथा बहुत लंबी है | कई दिन लग जाते हैं सुनते सुनते | मैंने तो यहाँ कुछ कुछ बातें ही बताई हैं सिर्फ जानकारी के लिए | श्रावण प्रतिपदा तिथि से इनकी साधना शुरू की जाती है और नवमी तक व्रत रख कर जमीन पर आसन लगाकर साधना की जाती है | इनकी साधना 40 दिन में पूरी की जाती है | गुगे की साधना करने वाले को नाग कुछ नहीं कहते और उसका साथ देते हैं | कई शक्तियां जैसे वीर और देवी आदि स्व उसके साथ चलने लग जाती हैं | फिर भी इसकी साधना कठिन नहीं है | पर खतरनाक जरूर है क्योंकि इसमें नाग प्रत्यक्ष आ जाते हैं | बहुत बार महसूस किया गया है, गुगे की साधना करने वाला नागों से संपर्क कर सकता है | उनकी मदद ले सकता है| किसी भी नाग कटे का इलाज भी कर सकता है | मुझे उस्ताद ने बताया था, ऐसी साधना हर एक को नहीं देनी चाहिए इसे सिर्फ परख कर गिने चुने लोगों को ही कराया जाता है जो इसके तेज को सहन करने योग्य हों सिर्फ उन्हे ही दी जाती है |
फिर भी श्रद्धा से करने वालों को सौम्य रूप में दर्शन देते हैं | और अपने भक्तों की आस मुराद पूरी करते हैं | एक बात जरूर कहूँगा कि यह साधना गुरु मुख से लेनी चाहिए और उस्ताद आज्ञा से ही करनी चाहिए| मैं यहाँ साधना दे रहा हूँ | आप इसे अपने गुरु जी की आज्ञा से ही करें या उनसे इस मंत्र संबंधी दीक्षा ले कर करें | यह साधना बहुत तीक्षण है | इसे साधक या तो किसी योग्य निर्देशन में संपन्न करे अथवा गुरु आज्ञा से करे | साधना से मिलने वाले लाभ या नुकसान के लिए हम किसी प्रकार से जिम्मेवार न होंगे | लेखक अपने अनुभव के आधार पर ही साधना लिखता है और हर साधक का अनुभव एक जैसा नहीं होता| इसलिए पुनः सोच विचार कर साधना करें | धन धन गुगा सुल्तान |
साधना विधि एवं नियम
१. साधना शुरू करने से पहले यह वचन करें कि मैं नाग कभी नहीं मारूंगा और न ही नागों को किसी तरह का कष्ट दूंगा |
२. यह साधना 41 दिन की है | इसे आप गोगा नवमी से शुरू कर सकते हैं | अगर ऐसा न हो तो किसी भी नौ चंदे रविवार ( शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार ) शुरू कर लें |
३. इसमें आप सफ़ेद वस्त्र और ऊनी आसन का उपयोग करें | आसन किसी भी रंग का लिया जा सकता है | फिर भी सफ़ेद आसन उत्तम है |
४. साधना काल में ब्रह्मचर्य अनिवार्य है |
५. इस मंत्र का 5 माला जाप करना है | इसके लिए काली हकीक माला सबसे उत्तम है |
६. इसे आप किसी भी नदी किनारे बैठ कर करें या गोगा माड़ी पर भी कर सकते हैं | वह हर शहर में होती है | या फिर नाग बाम्बी के पास बैठ कर करें | घर में अगर करनी हो तो ऐसा कमरा होना चाहिए जिसमे आपके अलावा कोई और न जाए जब तक साधना में हों | मेरे अनुसार तो नदी किनारा सबसे उत्तम है |
७. साधना शुरू करने से पहले एक जगह गौ गोबर से लीप लें | अगर मकान या फर्श पक्का है तो उसे अच्छी तरह धो कर शुद्ध कर लें और उस पर आसन लगायें और सामने एक बाजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर गोगा जी का चित्र स्थापित करें | चित्र का पूजन सफ़ेद कलियों से करें और एक फूलों का सेहरा चढ़ाएं, अगरबत्ती लगा दें | एक दिया गऊ के शुद्ध घी का लगा दें | एक लोटा दूध का मीठा मिलाकर पास रखें और जब मंत्र जाप पूरा हो जाये तो उसे नाग बाम्बी में डाल दें और कुछ सफ़ेद फूल चढ़ाकर नमस्कार करें |
८. इसके लिए भोग में दूध की बनी मिठाई रोज लें और पूजन कर भोग अर्पित करें |
९. नाग दर्शन होने पर डरें नहीं, वह कुछ नहीं कहेगा | जब पीर दर्शन हों तो उनसे प्रार्थना करें कि वह आप पर अपनी कृपा दृष्टि हमेशा रखें |
१०. साधना समय शाम 7 से 10 बजे का उत्तम है | अगर आप बाहर नदी किनारे कर रहे हैं तो शाम 4 बजे के बाद कभी भी शुरू कर सकते हैं |
११. निम्न मंत्र पढ़कर फूल लेकर गोगा जी के चित्र पर चढ़ाएं और जल हाथ में लेकर चारों और छिड़क दें, इससे रक्षा होगी | कुछ लोगों ने नित्य कर्म की साधना के बारे में पूछा, वो यह मंत्र रोज नित्य कर्म में भी कर सकते हैं | पर मेन साधना उसी तरीके से करनी है अगर पूर्ण लाभ चाहिए |
१२. इसे पूर्व दिशा की और करें, आपका मुख पूर्व दिशा की तरफ हो |
रक्षा मंत्र
ॐ नमो आदेश गुरु को जाहरापीर मददगीर रक्षा करनी अंग संग रहना आदेश गोगा जाहरपीर को आदेश गोरख साई को आदेश |
इसके बाद निम्न मंत्र की 5 माला जप करें |
साधना मंत्र
धन धन गोगा मंडली धन धन गोगा सुलतान |
पर्वत धूड़ा धूमीया गोगा चढ़े जहान ||
गोगे संधी कोठड़ी मली बिशियर नाग |
साधू चले वनखंडी आ करके रुख तमाम ||
सारे हाथ निवामदें सीता के अहु राम |
दायें मोढ़े उपर कालका बायें है हनुमत ||
माथे उपर नाहर सिंह तू नागो का सुल्तान |
फुरों मंत्र ईश्वरो वाचा ||
आदेश आदेश आदेश गोगा जाहरपीर को आदेश |
ॐ