यह नाग देवता का स्वरूप नाग अधिपति के नाम से जाना जाता है | अगर जीवन में रोग है, वह दूर नहीं हो रहा तो नाग देवता के इस स्वरूप की आराधना रोग मुक्ति करती है | जीवन में रोग के भय का नाश करते हुए साधक को पूर्ण रोग मुक्ति का वरदान देती है | जिनको कोई न कोई रोग बीमारी है, दवाई असर नहीं देती, रोग पीछा नहीं छोड़ रहा उन्हे यह साधना से बहुत लाभ मिलता है | यह रोग मुक्ति जीवन प्रदान कर साधक को पूर्ण सुरक्षा देती है | इस से असाध्य रोग दूर होते हैं |
विधि
- यह साधना किसी भी शुक्रवार को करें | यह एक दिन की साधना है |
- इसमें साधना सामग्री जो लेनी है लाल चन्दन की लकड़ी के टुकड़े, सफेद रंग का धागा, पीला और लाल धागा जो तकरीबन 8-8 अंगुल का हो | कलश के लिए नारियल, लाल वस्त्र व सफ़ेद वस्त्र, पूजन में फल, पुष्प, धूप, दीप, पाँच मेवा आदि |
- सबसे पहले पूजा स्थान में एक बाजोट पर सफ़ेद रंग का वस्त्र बिछा दें और उस पर एक पात्र में चन्दन के टुकड़े बिछा कर उस पर एक 9 मुख वाला नाग का रूप आटा गूँथ कर बना लें और उसे स्थापित करें | साथ ही भगवान शिव अथवा विष्णु जी का चित्र भी स्थापित करें | उसके साथ ही एक छोटा सा शिवलिंग एक अन्य पात्र में स्थापित कर दें |
- पहले गुरु पूजन कर साधना के लिए आज्ञा लें और फिर गणेश जी का पंचौपचार पूजन करें | उसके बाद भगवान विष्णु जी का और शंकर जी का पूजन करें |
- पूजन में धूप, दीप, फल, पुष्प, नवैद आदि रखें | प्रसाद पाँच मेवो का भोग लगायें |
- यह साधना शुक्रवार शाम 7 से 10 बजे के बीच करें | किसी कारण रात्रि साधना न कर सकें तो दिन में भी की सकती है | साधना के बाद नाग को जलप्रवाह उसी दिन कर देना चाहिए और घर आकर शिवलिंग का अभिषेक करें घी से | बाद में शुद्ध जल से स्नान करा पूजन करें |
- माला रुद्राक्ष की उतम है, और 4 ,11 या 21 माला मंत्र जाप करना है |
- दीप साधना काल में जलता रहना चाहिए |
- श्री कम्बल नाग का पूजन करें |
वेदी के उतर दिशा में नाग को स्थान देना चाहिए | वेदी के बीच श्री गणेश को, वेदी के ईशान कोण में मनसा देवी की स्थापना करनी है | अपना मुख पूर्व की ओर रखना है |
साधकों की सुविधा के लिए नाग पूजन दिया जा चुका है | अब कंबल नाग का आवाहन करें | हाथ में अक्षत, पुष्प लेकर निम्न मंत्र पढ़ते हुए नाग देवता पर चढ़ाएं |
आवाहन मंत्र
ॐ कम्बलं शूद्रवर्ण च शतत्रय फ़नैर्युत्म : |
आवाहयामि नागेशं प्रणमामि पुनः पुनः ||
ॐ कम्बलं नमः आवाहयामि स्थापयामि नमः |
ईशान्यां अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः | प्रतिष्ठः || प्रतिष्ठः ||
अब हाथ में अक्षत लें और प्राण प्रतिष्ठता करें |
प्राण प्रतिष्ठा मन्त्र
ॐ मनोजुतिर्जुषता माज्यस्य बृस्पतिर्यज्ञ मिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञ ठरं समिनदधातु |
विश्वेदेवसेऽइहं मदन्ता मों 3 प्रतिष्ठ ||
अस्मै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्मै प्राणाः क्षरन्तु च,
अस्ये देवत्वमर्चाये मामहेति च कश्चन ||
अब ईशान कोन में एक अष्ट दल कमल अक्षत से बनायें और उस पर एक ताँबे या मिटटी के कलश पर कुंकुम से दो नाग बनाकर अमृत रक्षणी माँ मनसा की स्थापना करें | कलश पर पाँच प्लव (आम आदि के पांच पत्ते) रखकर नारियल पर लाल वस्त्र लपेट कर रख दें | हाथ में अक्षत, कुंकुम, पुष्प लेकर मनसा देवी की स्थापना के लिए निम्न मंत्र पढ़ते हुए अक्षत कलश पर छोड़ दें |
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः | प्रतिष्ठः || प्रतिष्ठः ||
अब मनसा देवी का पूजन पंचौपचार से करें |
एक जल की आचमनी चढ़ाएं
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः ईशनानं स्मर्पयामी ||
चन्दन से गन्ध अर्पित करें
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः गन्धं समर्पयामि ||
पुष्प अर्पित करें
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः पुष्पं समर्पयामि ||
धूप
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः धूपं अर्घ्यामि ||
दीप
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः दीपं दर्शयामि ||
नवैद्य—मेवों या दूध् से बना नवैद अर्पित करें |
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः नवैद्यं समर्पयामि ||
अब पुनः आचमनी जल की अर्पित करें |
ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि ||
अब नाग पूजा बताई हुई विधि से करें, अगर किसी कारण पूर्ण पूजा न कर पाये तो पंचौपचार पूजन कर लें | वैसे साधना का पूर्ण लाभ लेने के लिए पूजन विधि अनुसार ही करें |
अब सफ़ेद्, पीला व लाल धागा नाग को अर्पित करें | यह धागा पूंछ की तरफ ही अर्पित करना है या चढ़ा देना है | रुद्राक्ष की माला से निम्न मंत्र का जप करें |
|| ॐ सं सं सं हं कम्बल नागाये नमः ||
|| Om Sam Sam Sam Ham Kambal Naagaaye Namah ||
जप समाप्ती पर माला को गले में पहन लें और यह माला पहन कर ही सोयें | जब साधना पूर्ण हो जाए तो शिवलिंग का पंचौपचार पूजन करें और गन्ने के रस से अभिषेक करें , अभिषेक करते हुए आप “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते रहें या शिवकवच से भी अभिषेक किया जा सकता है नहीं तो लघु रुद्राअभिषेक स्तोत्र पढ़ते हुए भी किया जा सकता है | इसके बाद अगर आप चाहो तो सर्प सूक्त का पाठ कर लें | सोते हुए माला गले में रहे | दूसरे दिन आप उस नाग की आकृति को किसी नदी पर जाकर जल प्रवाह कर दें समस्त पूजन सामग्री के साथ जो पूजन किया है वह पुष्प, अक्षत आदि आदि | कलश का जल घर में छिड़क दें या किसी पौधे को डाल दें | इस प्रकार यह साधना पूर्ण हो जाती है और जीवन में असाध्य रोगों से छुटकारा देती है रोग आदि से पूर्ण सुरक्षा होती है | यह साधना एक अनुभूत साधना है |